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शिवांगी सक्सेना

भाजपा और ‘आप’ की राजनीति का शिकार हुए निगम शिक्षक, महीनों से नहीं मिल रही सैलरी

दिल्ली में उत्तरी नगर निगम (एनडीएमसी) और पूर्वी नगर निगम (ईडीएमसी) स्कूलों के शिक्षकों को पिछले कई महीनों से वेतन नहीं मिला है. इसके चलते शिक्षकों ने ईडीएमसी दफ्तर के बाहर धरना प्रदर्शन किया. उनका कहना है कि ईडीएमसी ने स्कूल में काम करने वाले कर्मचरियों को पिछले पांच महीनों से सैलरी नहीं दी है. इसके अलावा पेंशनभोगियों को भी पिछले सात महीनों से पैसा नहीं मिला है. बता दे यह सभी स्थाई कर्मचारी हैं.

केवल शिक्षकों को ही नहीं बल्कि पूर्वी नगर निगम में काम करने वाले अधिकांश एमसीडी कर्मचारियों को आखिरी बार नवंबर 2021 में सैलरी मिली थी. इसके बाद से उन्हें सैलरी नहीं मिली है.

यहीं हाल एनडीएमसी में काम कर रहे शिक्षकों का भी है जिन्हें पिछले दो महीनों से सैलरी नहीं मिली है.

पूर्वी दिल्ली में कुल 1700 एमसीडी स्कूल हैं जिनमें करीब 5000 शिक्षक पढ़ाते हैं.

43 वर्षीय डिम्पी मसानी पिछले 17 साल से एमसीडी स्कूल में पढ़ा रही हैं. फिलहाल वह मंडोली बालिका विद्यालय में छठी कक्षा को पढ़ाती हैं. पिछले पांच महीनों से सैलरी न आने के कारण उनके लिए घर चलाना मुश्किल हो गया है.

डिम्पी न्यूज़लॉन्ड्री को बताती हैं, “कल मेरे घर पानी की मोटर खराब हो गई. मैं डर गई कि इसे ठीक कराने के पैसे कहां से लाऊंगी. इतनी गर्मी पड़ रही है. हमारे पास बिजली का बिल भरने तक के पैसे नहीं बचे हैं. हमारा परिवार एसी और कूलर के बिना, केवल पंखे की हवा में सोता है. हालात इतने खराब हैं.”

डिम्पी के ऊपर चार लोन की किश्तें चुकाने का भी भार है. वह कहती हैं, “मैंने पिछले चार महीनों से लोन का पैसा नहीं भरा. देरी होने की वजह से पेनल्टी भी पड़ती है. मैं कहां से इतना पैसा चुका पाऊंगी अगर सैलरी समय पर नहीं मिलेगी?”

30 वर्षीय सुनील पचार पिछले दो साल से सुल्तानपुरी के एमसीडी स्कूल में बतौर विशेष शिक्षक पढ़ाते हैं. वह शिक्षक न्याय मंच नगर निगम के समन्वय सचिव भी हैं. उनके दो छोटे बच्चे हैं. वह कहते हैं, “बच्चों की फीस जमा करने के लिए मुझे स्कूल से रोज फोन आता है. छठा महीना चल रहा है और सैलरी नहीं मिली है. मैंने अपने परिचितों से मांगकर अपने बच्चों की स्कूल फीस भरी.”

वह आगे कहते हैं, “बैंक वाले हमें लोन देने से हिचकिचा रहे हैं क्योंकि हमारी सैलरी की कोई नियमिता नहीं है.”

अन्य शिक्षकों की समस्या बताते हुए सुनील ने कहा, “हालत इतने बुरे हैं कि कई शिक्षक अपने घर का किराया नहीं दे पा रहे हैं. उन्हें मकान घर खाली करने का दबाव बना रहे हैं.”

गांधी नगर में निगम स्कूल की प्रिंसिपल विभा सिंह बताती हैं कि स्कूल में मरम्मत के काम तक के पैसे नहीं हैं. वह कहती हैं, “स्कूल का वाटर कूलर खराब हो गया है. उसे ठीक कराने के लिए 14,000 रूपए की जरूरत है. लेकिन नगर निगम पैसा नहीं भेज रहा है.”

ईडीएमसी के मेयर श्याम सुंदर अग्रवाल ने माना कि वेतन में देरी हो रही है लेकिन नगर निगम मुद्दों को सुलझाने का प्रयत्न कर रहा है. वह कहते हैं, "हमने सरकार से इस क्वार्टर का पैसा नहीं मिला है. इसीलिए नगर निगम का एकीकरण किया जा रहा है. जैसे ही हमें पैसा मिलेगा, हम दो महीने की सैलरी जारी कर पाएंगे. हमें उम्मीद है कि एकीकरण के बाद वेतन में देरी का संकट जल्द ही स्थायी रूप से हल हो जाएगा."

क्या एमसीडी के एकीकरण से सुलझेगी परेशानी?

बीते 19 अप्रैल को संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्‍यसभा से पार‍ित दिल्ली नगर निगम अधिनियम (संशोधन) -2022 को राष्‍ट्रपत‍ि से मंजूरी मिल गई. इस कानून के अध‍िसूच‍ित करने के बाद द‍िल्‍ली में एक मेयर और एक कम‍िश्‍नर की व्‍यवस्‍था होगी. वर्तमान में एमसीडी वार्डों की संख्‍या 272 है. वहीं नए कानून में इसे अध‍िकतम 250 न‍िर्धार‍ित क‍िया गया है.

केंद्र सरकार ने कहा था कि निगम के एकीकरण के बाद सैलरी का मसला खत्म हो जाएगा लेकिन अब तक कोई हल नहीं निकल पाया है.

बता दें कि 2022 में हुए एकीकरण से पहले दिल्ली में तीन निगम थे- पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी), उत्तर दिल्ली नगर निगम, (एनडीएमसी) और दक्षिण दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी).

दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन एक्ट 1957 के अनुसार ड्रेनेज का काम, कचरा, सफाई, डिस्पेंसरी, सड़क, पार्क, एमसीडी स्कूल, आदि एमसीडी के अंतर्गत आने वाले काम हैं. इसके लिए एमसीडी को काफी पैसा प्रॉपर्टी टैक्स, विज्ञापन आदि से मिलता है. इसके अलावा दिल्ली सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य और कॉलोनियों के पुनर्वास के लिए एमसीडी को पैसा देती है जिसे डीवोल्यूशन फंड भी कहा जाता है.

दिल्ली वित्त आयोग इस बात का फैसला लेता है कि एमसीडी को कितना फंड मिलेगा. साथ ही एसडीएमसी, एनडीएमसी और ईडीएमसी में कितना फंड बंटेगा यह भी आयोग तय करता है.

इस साल 2022-23 के बजट की बात करें तो दिल्ली सरकार ने एसडीएमसी को 1029 करोड़ रुपए, एनडीएमसी को 1197 करोड़ और ईडीएमसी को 1492 करोड़ रूपए देने का वादा किया था लेकिन अप्रैल में निगम का एकीकरण हो गया.

ईडीएमसी के एकाउंट्स विभाग में काम करने वाले एक सीए ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि दिल्ली सरकार ने इस क्वार्टर का पैसा नहीं भेजा है जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत ईडीएमसी को है.

वह बताते हैं, “ईडीएमसी को फंड की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. क्योकि हमारा इंटरनल सोर्स ऑफ इनकम कम होता है. एसडीएमसी की तरह यहां बड़े मकान नहीं हैं जिनसे बहुत टैक्स मिलता हो. न ही हमारे विज्ञापन आसानी से बिकते हैं.”

एमसीडी की आड़ में राजनीति

इस पूरे मामले पर आम आदमी पार्टी के एमसीडी प्रभारी दुर्गेश पाठक का कहना है कि सरकार ने अपनी तरफ से फंड भेज दिया है. पाठक कहते हैं, “सरकार ने फंड भेज दिया है. एमसीडी के एकीकरण के बाद अब केंद्र सरकार पैसा देगी.”

वहीं ईडीएमसी के मेयर श्याम सुंदर ने दिल्ली सरकार को खत लिखकर कहा है कि एकीकरण के बावजूद ईडीएमसी वजूद में है और इसलिए दिल्ली सरकार को फंड देना होगा.

इस पूरे मामले पर शिक्षा न्याय मंच नगर निगम के अध्यक्ष कुलदीप सिंह खत्री कहते हैं कि भाजपा और आप की लड़ाई के बीच शिक्षक बीच में पिस रहे हैं. वह कहते हैं, “हमारी केवल सैलरी ही बकाया नहीं है. हमारा लाख रूपए का एरियर भी नहीं मिला है. ईडीएमसी और एनडीएमसी की बात करें तो शिक्षकों के प्रमोशन के बाद बढ़ा पैसा नहीं मिला है. सफाईकर्मचारियों और पेंशनभोगियों को भी पैसा नहीं मिल रहा है. हमने कई बार भाजपा कार्यालय पर प्रदर्शन किया. सीएम केजरीवाल को चिट्टी लिखी पर हमारी समस्याओं का कोई समाधान नहीं हुआ.”

नगर निगम और राज्य सरकार के बीच पैसों को लेकर यह लड़ाई नई नहीं है. एमसीडी स्कूलों के शिक्षक लंबे समय से ऐसी स्थिति का सामना कर रहे हैं. हर बार उनकी सैलरी दो से तीन महीने के अंतराल में आती है. इसके लिए उन्होंने कई बार प्रदर्शन भी किए हैं. उनका कहना है कि हर बार उन्हें आश्वासन देकर लौटा दिया जाता है.

शिक्षक महिपाल सिंह का कहना है कि अगर शिक्षकों को जल्द ही उनकी मेहनत का पैसा नहीं मिला तो इस बार वे उपराज्यपाल के घर के बाहर अनिश्चितकाल भूख हड़ताल करेंगे.

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