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शिवनारायण राजपुरोहित

मणिपुर हिंसा की शिकार: वो वार मुझे अब भी महसूस होते हैं, इंफाल अब मेरा घर नहीं रहा

20 वर्षीय ज़मङ्गाईकिम गांगटे के लिए 3 मई का दिन आम दिनों की तरह ही था. आसमान साफ था और वो कॉलेज में अपनी कक्षाओं में गई, दोस्तों से मिली और फिर दोपहर तक मणिपुर के पश्चिमी इंफाल में स्थित लाम्फेल में अपने घर लौट आई.

लेकिन थोड़ी देर बाद ही ज़मङ्गाईकिम और उनका परिवार एक ऐसे तूफान के बीच फंस गया जिसने मणिपुर में कई जीवन तबाह कर दिए.

अगले 24 घंटों में, प्रतिशोधी भीड़ ने उनका पीछा किया, उनकी जातीय पहचान के लिए उनसे आक्रामक पूछताछ हुई और अपनी जान बचाने के लिए पांच घंटे तक एक इमारत की छत के कमरे में बंद रहने को मजबूर होने के बाद उसे खुद को एक कार की डिग्गी में ठूंसना पड़ा. इस मुसीबत के टलने तक ज़मङ्गाईकिम ने अपनी मां और भाई को सदा के लिए खो दिया, एक ऐसी क्षति जिसे कभी पूरा नहीं किया जा सकता. 

उनकी मां, 57 वर्षीय गोऊज़ावुंग मणिपुर सरकार में अपर सचिव थीं. उनके भाई गोऊलालसांग 27 साल के थे और हाल ही में उनका विवाह हुआ था.

भीड़ बड़े ही सुनियोजित रूप से, गाड़ियों को रोकने, अपने निशानों की पहचान करने, लगातार पूछताछ करने, सड़क पर धातु की चीज़ों की आवाज़ से लोगों को जुटाने और हिंसा के गवाह पत्रकारों को डराने का काम कर रही थी.

3 मई को मणिपुर के चूड़ाचांदपुर जिले में मैती समुदाय और कुकी आदिवासियों के बीच हिंसा भड़कने के साथ ही बलात्कार और हत्या की अफवाहें फैलने लगी थीं. इससे पहले ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर द्वारा मणिपुर उच्च न्यायालय के निर्देश के खिलाफ एक प्रतिरोध रैली आयोजित की गई थी, जिसमें राज्य सरकार को मैती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने पर विचार करने का निर्देश दिया गया था. 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को "बिल्कुल गलत" बताया.

इसके बाद हुई हिंसा में अब तक 70 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. कम से कम 200 से अधिक लोग घायल हुए हैं और लगभग 50 हजार लोग विस्थापित हुए हैं. इस हफ्ते की शुरुआत में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने दावा किया कि सुरक्षाबलों के नेतृत्व में एक अभियान में 40 कुकी उग्रवादियों को मार गिराया गया.

(बाएं से दाएं) ज़मङ्गाईकिम गांगटे, उनके पिता लेनबोई गांगटे गांगटे, मां गोऊज़ावुंग, भाभी नैन्सी और भाई गोऊलालसांग।

‘ज़्यादातर मंत्री वहां रहते हैं’

ज़मङ्गाईकिम का परिवार आदिवासियों और गैर-आदिवासियों की मिली-जुली आबादी वाले लाम्फेल के सरकारी क्वार्टर में रहता था. हालांकि 3 मई को रात गहराने के साथ-साथ इंफाल के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में जिस तरह चिंता व तनाव तेज़ी से बढ़ने लगा, उनके परिवार को भी चिंता होने लगी.

वे बताती हैं, “हमने लंगोल इलाके में एक रिश्तेदार के घर रात बिताने का फैसला किया. वह इलाका सुरक्षित था क्योंकि ज्यादातर मंत्री वहीं रहते हैं.”

उनके रिश्तेदार का घर ज्यादा दूर नहीं था, करीब 10 मिनट की पैदल दूरी ही थी. रात 10 बजे के आसपास, अंधेरी गली का भयानक सन्नाटा सिर्फ तीन दर्जन तेज कदमों की आवाज़ और कभी-कभार दूर से आने वाली चीखों और विस्फोटों से ही टूट रहा था.

उनका पूरा परिवार 4 मई की सुबह सरकारी क्वार्टर में लौटा और उन्होंने पास के सीआरपीएफ राहत शिविर के लिए रवाना होने का फैसला किया, जो दो किमी से थोड़ा ज़्यादा दूरी पर था. सुबह करीब 8 बजे ज़मङ्गाईकिम के भाई गोऊलालसांग ने अपनी कार से इलाके की टोह ली. उन्हें पूरे रस्ते में कोई रोक-टोक नहीं मिली और भीड़ के भी कोई संकेत नहीं थे. दुकानें बंद थीं और सड़कें सुनसान थीं.

लेकिन अगले दो घंटों के दौरान यह इलाका हिंसा और उथल-पुथल से भर गया.

गोऊलालसांग, जिनका विवाह पिछले साल ही हुआ था, इलाके का जायज़ा लेकर लौट आए थे और उन्होंने परिवार से कहा कि उन्हें जल्द से जल्द निकल जाना चाहिए क्योंकि शिविर सुरक्षित था. उन्होंने दो कारों में चावल, सब्जियां, मांस और अपने दस्तावेज पैक किए. ज़मङ्गाईकिम की मां, भाई, भाभी, चचेरी बहन और एक साल के बच्चे के साथ चाची ने खुद को अपनी सफेद स्विफ्ट डिजायर कार में ठूंस लिया. उनकी चाची के परिवार के सात अन्य सदस्य दूसरी कार में सिकुड़ कर बैठ गए.

पहले सफेद कार गई. अगले दो किमी तक इलाका सुनसान था. जैसे ही कार दाहिनी ओर मुड़ी, गोऊलालसांग ने 200-250 लोगों की भीड़ देखी. उन्होंने कार को पीछे लिया, लेकिन थोड़ा पीछा करने के बाद भीड़ ने कार को डिप्टी कमिश्नर कार्यालय के पास रोक लिया. दूर से कार को भीड़ द्वारा खींचा जाता देख, दूसरी कार समय रहते घूम गई और अलग रास्ते पर निकल गई.

इस भीड़ में युवा, अधेड़ उम्र के पुरुष और महिलाएं शामिल थे, जो छड़ियों, बांस, लाठियों, पत्थरों और ईंटों से लैस थे.

ज़मङ्गाईकिम की मां गोऊज़ावुंग, पशु चिकित्सा और पशुपालन सेवाओं के विभाग की अपर सचिव थीं, उन्होंने भीड़ के गुस्साए चेहरों से कहा, "हम मिज़ो हैं कुकी नहीं." उन्होंने अपना सरकारी पहचान पत्र भी दिखाया लेकिन उनकी बात किसी ने नहीं सुनी. ज़मङ्गाईकिम ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "वे हमारे चेहरे-मोहरे की वजह से जानते थे कि हम आदिवासी हैं."

सभी को कार से बाहर खींच लिया गया. आग लगाने से पहले कार की खिड़कियां तोड़ दी गईं. वे कहती हैं कि भीड़ ने मौके पर पत्रकारों के वीडियो रिकार्डिंग उपकरण भी छीन लिए थे.

सभी छः लोगों को भीड़ से घिरी एक बेंच पर बैठा दिया गया और उन पर हर तरफ से सवालों और गालियों की बौछार होने लगी: "तुम कौन हो?" "तुम्हारी क्या जात है?"

ज़मङ्गाईकिम ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "उस समय तक मेरी मां पहले से ही रो रही थीं. उन्होंने अपना सरकारी पहचान पत्र दिखाया और बताया कि वह अपर सचिव हैं. भीड़ में से एक आदमी ने कहा कि उन्हें हमें जाने देना चाहिए लेकिन दूसरों ने असहमति जताई और यहां तक कि हमारे लिए सहानुभूति रखने पर उस आदमी से भी सवाल किए. उन्होंने उससे पूछा कि क्या वो हमारे रिश्ते में है."

हंगामे के बीच एक दूसरी कार की वजह से भीड़ का ध्यान बंटा. ज़मङ्गाईकिम के परिवार के आसपास भीड़ कम हो गई. एक मैती आदमी ने मौका देखकर उन्हें पास की गली के एक घर में छिपा दिया, वो उसका अपना घर नहीं था.

ज़मङ्गाईकिम ने 112 सहित सभी सरकारी और पुलिस हेल्पलाइन नंबरों पर फोन किया. "कोई जवाब नहीं मिला."

पांच मिनट में ही भीड़ को इस ठिकाने के बारे में पता चल गया और वह घर के सामने जमा हो गई. घर के गेट पर पथराव किया गया और लाठियां बरसाई गईं. अपनी संपत्ति को नुकसान होता देख मकान मालिक ने परिवार को उस कमरे से चले जाने को कहा. भीड़ का विरोध ज़्यादा देर नहीं टिका, सभी को बाल पकड़कर बाहर खींच लिया गया. भीड़ उत्तेजना से भरी हुई थी.

ज़मङ्गाईकिम याद करते हुए बताती हैं कि महिला दंगाई, दयाभाव दिखलाते हुए कह रहीं थीं, “उन्होंने हमसे कहा कि हमें आभारी होना चाहिए कि चूड़ाचांदपुर में मैती महिलाओं की तरह हमारे साथ बलात्कार नहीं हो रहा. हम सिर्फ तुम्हें पीट रहे हैं. उन्होंने मेरी मां से कहा था कि वे मगरमच्छ के आंसू न बहाए.”

गोउलालसांग और उनकी पत्नी नैंसी

गोऊलालसांग, घसीटे जाने वाले अंतिम व्यक्ति थे और उनके सिर पर लगातार वार किए गए. परिवार के अन्य सदस्यों की पीठ पर लोहे की छड़ियों, डंडों और पत्थर से वार किए गए. महिला दंगाई बच्चे को इधर-उधर धकेल रही थीं.

ज़मङ्गाईकिम कहती हैं, "जब मैं बोलती हूं, तब भी मुझे अपनी पीठ पर लाठी और पत्थरों से होने वाई वार महसूस होते हैं. इस वक्त तक हमें अलग कर दिया गया था और सड़क पर ले जाया गया (जहां उनकी कार जला दी गई थी). मुझे नहीं पता था कि मेरे परिवार के सदस्य कहां हैं.”

सड़क पर लोगों का एक झुण्ड बुरी तरह घायल गोऊलालसांग के चारों ओर चक्कर लगा रहा था. उनकी मां गोऊज़ावुंग झुण्ड की ओर भागीं और गोऊलालसांग के फटे हुए सिर व शरीर को ढक लिया. लेकिन लाठी-डंडे पकड़े हाथ नहीं डगमगाए. इस बीच गोऊलालसांग की पत्नी नैन्सी डगमगाते हुए दोनों की ओर बढ़ीं और उन्हें ढक लिया, लेकिन उन्हें फौरन हटा दिया गया.

ज़मङ्गाईकिम बताती हैं, “मैंने देखा कि मेरी चाची, बच्चे और चचेरे भाई के साथ थीं. जब भीड़ मेरे भाई और मां को पीटने में लगी थी, तब मैती समुदाय के दो आदमियों ने हमारी सलामती के लिए पास के एक सरकारी परिसर में ले जाने की पेशकश की. वो इमारत मुश्किल से 200 मीटर दूर ही थी. मैंने आखिरी बार देखा, मेरा भाई शायद बेहोश था. उसके सिर से खून टपक रहा था. भीड़ जयकार कर रही थी, ताली बजा रही थी और जश्न मना रही थी जैसे कि यह कोई उपलब्धि हो. मैं मदद नहीं कर सकती थी."

थोड़ी देर चुप रहने के बाद वे कहती हैं, “मेरे भाई के साथ वो जो कुछ कर सकते थे, उन्होंने किया."

गांगटे परिवार की कार को आग के हवाले कर दिया गया.

‘दो मैतियों ने हमें छुपाया, हमें सुरक्षित जगह तक ले गए’

वह किसी तरह खुद को घसीटते हुए सरकारी परिसर की छत तक ले गईं. दोनों मैतियों ने ज़मङ्गाईकिम, उनके चचेरे भाई और चाची, जो बच्चे को लिए हुए थीं, को एक कमरे में छिपा दिया और उसे बाहर से बंद कर दिया.

कुछ ही मिनटों के भीतर ज़मङ्गाईकिम ने भीड़ पर आंसू गैस के कुछ गोले दागे जाने की आवाज सुनी. “बाद में, मुझे बताया गया कि पुलिस ने दो शवों को उठा लिया है. मैं तुरंत समझ गई कि वे मेरी मां और भाई ही थे.”

अगले पांच घंटे तक तीनों उस छत वाले कमरे में ही रहे. वो दोनों आदमी भीड़ के साथ घुलने-मिलने के लिए वापस चले जाते, और थोड़ी-थोड़ी देर में महिलाओं को बाहर हो रही बातचीत से अवगत कराने के लिए लौट आते थे. इस बीच ज़मङ्गाईकिम ने उनके परिवार के जानकार कई पुलिस अधिकारियों को मदद के लिए फोन किया. "उनमें से एक ने कहा कि पुलिस वहां नहीं पहुंच सकती क्योंकि भीड़ पुलिस से तादाद में कहीं ज़्यादा होगी."

पुलिस के विपरीत, उन मैती आदमियों ने न तो हार मानी और न हथियार डाले। वे बच्चे और महिलाओं के लिए नाश्ता लेकर आए। उन्होंने भागने की लगातार योजना बनाई, उनका कहना था कि अगर पुलिस आई तो वे सकुशल नहीं निकलेंगे.

ज़मङ्गाईकिम याद करते हुए बताती हैं, “उन्होंने हमें बताया कि अगर ये बात खुल गई कि वे हमारी मदद कर रहे हैं, तो वे भी खतरे में पड़ सकते हैं. उन्होंने कहा कि भीड़ में से कुछ लोगों ने हमें परिसर में घुसते हुए देख लिया था, इसलिए अब हमारे लिए रुकना महफूज़ नहीं था. उन्हें डर था कि रात में परिसर पर हमला किया जाएगा."

भागने की योजना तय थी. वे न्यूज़लॉन्ड्री को बताती हैं, "हमारे पास और कोई विकल्प नहीं था.” शाम 6 बजे के आसपास, बच्चे के साथ महिलाओं को उन दोनों आदमियों में से एक की कार की डिग्गी में ठूंस दिया गया. बच्चे के रोने की आवाज को दबाने के लिए कार में संगीत पूरे ज़ोर पर बज रहा था. डिग्गी में ज़मङ्गाईकिम ने बच्चे को शांत करने के लिए उसे कार्टून वीडियो दिखाए. सफर 10 मिनट का ही था लेकिन उन्हें लगा कि कभी खत्म नहीं होगा. लेकिन रास्ते में आने वाले गति अवरोधकों की वजह से सिर टकराने को छोड़कर सफर में कोई दिक्कत नहीं हुई. “अगर हम पकड़े जाते, तो मारे जाते. हमने मणिपुर राइफल्स के दूसरे कैंप तक पहुंचने के लिए अलग रास्ता अपनाया.”

ज़मङ्गाईकिम गांगटे की मां गोऊज़ावुंग

वे अर्धसैनिक बलों द्वारा सुरक्षित मणिपुर राइफल्स कैंप पहुंचे. वे सुरक्षित थीं, लेकिन बेचैन थीं. उनकी भाभी नैंसी लापता थीं. उसने फोन से खोज जारी रखी और आधी रात तक पता चला कि नैन्सी को इंफाल में क्षेत्रीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान के आईसीयू में भर्ती कराया गया था. उनके सिर पर चोटें थीं और कलाई व उंगलियां टूट गई थीं. बाद में उनका इलाज एम्स दिल्ली में हुआ. तस्वीरों में दिखाई देता है कि उनके सिर पर सब जगह टांके हैं और दोनों हाथों पर प्लास्टर है.

ज़मङ्गाईकिम, उसकी चचेरी बहन और बच्चे के साथ उनकी चाची जोखिम नहीं उठा सकते थे, और इसलिए वे राज्य से बाहर निकलने का रास्ता तलाशने लगे. दिल्ली के लिए 10 मई की फ्लाइट टिकट बुक हो चुकी थी. सेना उन्हें इंफाल हवाई अड्डे तक ले गई. ज़मङ्गाईकिम कहती हैं, “शिविर में सुविधाएं अच्छी नहीं थीं और हमने अफवाहें सुनीं कि कुछ मैती वहां प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे. हम राज्य से निकलने को आतुर थे. हमने सोचा कि हवाई अड्डा ज़्यादा सुरक्षित रहेगा.”

ये महिलाएं चार दिन पहले ही हवाई अड्डे पर पहुंच गईं. लेकिन हवाई अड्डे पर सुरक्षा कर्मियों द्वारा केवल उन्हीं लोगों को प्रवेश की अनुमति दी, जिनकी उड़ान उसी दिन थी. ज़मङ्गाईकिम ने अपने उड़ान विवरण के बारे में मिले मेसेज को संपादित किया, उसमें उड़ान की तारीख 10 मई से बदलकर 6 मई की और हवाई अड्डे में प्रवेश किया. उन्होंने हवाई अड्डे में चार दिन बिताए और फिर 10 मई को दिल्ली के लिए उड़ान भरी. उनकी भाभी 12 मई को राजधानी पहुंचीं और उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया. उन्हें पिछले हफ्ते अस्पताल से छुट्टी मिल गई.

ज़मङ्गाईकिम के पिता लेनबोई गांगटे, जो खुद एक सब-इंस्पेक्टर हैं, ने चूड़ाचांदपुर जिले में एक शून्य प्राथमिकी दर्ज कराई. (घटना के समय वह चुड़ाचांदपुर में थे और हिंसा के कारण इंफाल नहीं जा सके) चुड़ाचांदपुर के एसपी कार्तिक मल्लादी ने पुष्टि की कि गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई है.

ज़मङ्गाईकिम की मां और भाई के शव अब भी क्षेत्रीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान के मुर्दाघर में रखे हुए हैं.

उनके परिवार में गोऊलालसांग ही घर के छोटे-मोटे काम करते थे और अपनी मां को ऑफिस लेने और छोड़ने जाते थे. अब ड्राइव के दौरान मां-बेटे की नोकझोंक या रात के खाने पर बिना बात की बहसें नहीं होंगी. वे दोनों चूड़ाचांदपुर में अपने निर्माणाधीन घर को पूरा होते देखने के लिए भी नहीं होंगे.

ज़मङ्गाईकिम को डर है कि बढ़ती सामुदायिक दरारों के कारण वह इंफाल में अपनी शिक्षा जारी नहीं रख पाएंगी. उनका परिवार तीन दशक से इंफाल में बसा हुआ है. हालांकि उनके माता-पिता अपना सेवानिवृत्त जीवन चूड़ाचांदपुर में अपने समुदाय के बीच बिताना चाहते थे, क्योंकि उन्होंने अपने तीनों बच्चों के जन्म से पहले 90 के दशक में हिंसा के कई प्रकरण देखे थे. लेकिन सभी भाई-बहन अपने माता-पिता से मतभेद रखते थे. उन्होंने बेहतर नौकरी व शिक्षा के अवसरों और अन्य सुविधाओं के साथ इंफाल में ही अपना जीवन को देखा था.

क्या ज़मङ्गाईकिम इंफाल को अपना घर कह सकती हैं?

"अब नहीं. इंफाल ने मेरे परिवार की हत्या कर दी. उसने हमारा सब कुछ छीन लिया. मैं अब इसे घर नहीं कहूंगी.”

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