
2002 में गुजरात दंगों के साए में विधानसभा चुनाव करवा कर नरेंद्र मोदी गुजरात के दोबारा मुख्यमंत्री बने ही थे. उसी दौरान मई 2003 में गुजरात समाचार में एक ख़बर छपी. जिसका शीर्षक था, ‘ઉપરાષ્ટ્રપતિ કરતાં મુખ્યમંત્રીનો કાર કાફલો મોટો’ यानी मुख्यमंत्री की कारों का बेड़ा उपराष्ट्रपति से भी बड़ा.
गुजरात समाचार की इस ख़बर में बताया गया कि वीर सावरकर की तस्वीर के अनावरण के लिए देश के उपराष्ट्रपति गुजरात पहुंचे थे. उनके साथ गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे. उपराष्ट्रपति के काफिले से ज़्यादा गाड़ियां मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के काफिले में मौजूद थी. आगे इसी ख़बर में लिखा गया- ‘गुजरात के कई नेताओं के कहने और करने का तरीका अलग-अलग होता है. पाखंड उनके जीवन का एक अंग बन गया है.’

गुजरात के एक पत्रकार बताते हैं कि यह पढ़कर नरेंद्र मोदी बहुत गुस्सा हो गए थे. इस बात के करीब पांच महीने बाद 15 अक्टूबर 2003 को चार पन्नों का एक ‘परिशिष्ट’ गुजरात के अलग-अलग जिलों में वितरित किया गया. इसका नाम था- ‘गुजरात सत्य समाचार’. यह देखने में एकदम गुजरात समाचार जैसा था. इसके मास्टहेड और फॉन्ट गुजरात समाचार से मिलते-जुलते थे.
इस परिशिष्ट पर अगले दिन इंडियन एक्सप्रेस ने एक ख़बर प्रकाशित की. ख़बर के मुताबिक, ‘गुजरात सत्य समाचार’ प्रदेश के सूचना विभाग द्वारा छपवाया गया था. इसकी 12 लाख कॉपियां वितरित की गई थीं. एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक, अख़बार विक्रेताओं पर दबाव बनाकर इस ‘परिशिष्ट’ को घर-घर पहुंचाने के लिए मज़बूर किया गया था.
सूचना विभाग द्वारा प्रकाशित इस चार पेज के ‘परिशिष्ट’ में मीडिया का जमकर मज़ाक उड़ाया गया था. इसके निशाने पर मुख्यत: गुजरात समाचार ही था. इसके संपादक के रूप में सूचना विभाग के निदेशक का नाम था. बता दें कि उस समय सूचना विभाग, तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के पास ही था. इसे लेकर हमने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को सवाल भेजे हैं. अगर उनका कोई जवाब आता है तो उसे ख़बर में शामिल किया जाएगा.

गुजराती भाषा में सक्रिय रहे एक पत्रकार न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘गुजरात सत्य समाचार, कुछ अंक निकलने के बाद बंद हो गया. उसके बाद सरकार की दूसरी जो पत्रिकाएं थी, उसका प्रकाशन बड़ी संख्या में होने लगा. नरेंद्र भाई को पीआर की ताकत का अंदाजा हो गया था. उन्होंने बाइब्रेंट गुजरात शुरू किया, उसके बाद अलग-अलग इवेंट का आयोजन शुरू किया, टीवी विज्ञापन पर जमकर खर्च होने लगा.’’
बात वहां से आगे बढ़ गई लेकिन गुजरात समाचार और नरेंद्र मोदी के रिश्तों में कड़वाहट बनी रही. खासकर इसके मालिक और संपादक श्रेयांश शाह के साथ. गुजरात समाचार आगे भी मुख्यमंत्री मोदी की सरकार की आलोचना करता रहा.
गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार और व्यंग्यकार उर्विश कोठरी स्क्रॉल.कॉम पर प्रकाशित अपनी हालिया रिपोर्ट में बताते हैं कि प्रसिद्ध राम कथावाचक मोरारी बापू ने मुख्यमंत्री (नरेंद्र मोदी) और श्रेयांश शाह के बीच शांति स्थापित करने की कोशिश की थी. लेकिन यह समझौता ज़्यादा दिन तक नहीं चला. गुजरात समाचार ने थोड़ा बहुत तालमेल के बावजूद खुद को एंटी एस्टैब्लिशमेंट दिखाने की ही कोशिश की.
गुजरात समाचार की कहानी को हम थोड़ा और पीछे से देख सकते हैं. 1985 में गुजरात में ‘आरक्षण विरोधी’ आंदोलन चल रहा था. जिसने आगे चलकर साम्प्रदायिक हिंसा का रूप ले लिया. उस दौरान गुजरात समाचार के कार्यालय में आग लगा दी गई थी. अटकलें लगाई गई कि यह आग कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने लगाई क्योंकि गुजरात समाचार में उस वक्त लगातार मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी को निशाना बनाते हुए ख़बरें चल रही थीं. इस आग के कारण अख़बार का प्रकाशन लगभग एक सप्ताह तक बंद रहा.
भाजपा और गुजरात समाचार के बीच रार
गुजरात समाचार करीब एक सदी पुराना अखबार है. इसका प्रकाशन लोक प्रकाशन लिमिटेड द्वारा किया जाता है, जो जीएसटीवी नामक एक समाचार चैनल भी चलाता है.
2017 तक गुजरात समाचार के पाठकों की संख्या 1.17 करोड़ थी, हालांकि, 2019 में इसमें गिरावट के संकेत मिलते हैं. यह अखबार भारत का सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला गुजराती समाचार पत्र माना जाता है.
भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे संघर्ष के बीच बड़ी संख्या में मीडिया चैनलों के एक्स हैंडल (पूर्व में ट्विटर) को भारत सरकार के कहने पर प्रतिबंधित किया गया. इसमें से एक गुजरात समाचार भी था.
भारत-पाकिस्तान के तनाव के बीच जब युद्धविराम की बहस चल रही थी उसी बीच 14 मई की सुबह पांच बजे मुंबई आयकर विभाग (आईटी) की टीम गुजरात समाचार टीवी, गुजरात समाचार, इसके संपादक श्रेयांश शाह, उनके भाई बाहुबली शांतिलाल शाह, बेटे नीमम श्रेयांस शाह और अमम श्रेयांस शाह के घरों पर जांच के लिए पहुंची.
आईटी की यह जांच तकरीबन 36 घंटे चलने के बाद 15 मई की शाम 5:30 बजे खत्म हुई. इसके कुछ ही मिनटों बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम जांच के लिए पहुंच गई. देर शाम होते-होते ख़बर आई कि गुजरात समाचार के सह-मालिक बाहुबली शांतिलाल शाह को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया है. हालांकि, गिरफ्तारी के बाद स्वास्थ कारणों से शाह को अहमदाबाद में विशेष पीएमएलए अदालत ने अंतरिम जमानत दे दी. ईडी ने मानवीय आधार पर इसका विरोध नहीं किया.
ईडी की इस कार्रवाई के पीछे क्या कारण था, इसको लेकर अब तक कोई जानकारी साझा नहीं की गई है. ईडी के पीआरओ सत्यव्रत कुमार ने 17 मई की दोपहर न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि इस मामले में अगले दो घंटे में प्रेस रिलीज जारी की जाएगी. हालांकि, अब तक कोई प्रेस रिलीज जारी नही हुई है. इसको लेकर हमने कुमार को कुछ सवाल भेजे हैं. साथ ही हमने आयकर विभाग (आईटी) की प्रवक्ता वी. रंजीथा को भी सवाल भेजे हैं कि उनके विभाग की जांच का आधार क्या था.
सूत्रों के हवाले से कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि इस जांच और गिरफ्तारी की वजह भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी सेबी के पास साल 2016 में दर्ज एक शिकायत है. यह कंपनियों के आईपीओ से अर्जित धन के दुरुपयोग से संबंधित है. इसी को लेकर 2023 में प्रवर्तन शिकायत सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) दर्ज की गई. यह जांच उसी से जुड़ी है.
द प्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शाह परिवार से जुड़ा ऐसा ही एक मामला 2012 में भी सामने आया था, जो कि 2006 में दर्ज हुआ था. आरोप के मुताबिक, शाह परिवार कथित तौर पर 2003 से 2005 के बीच इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फाइनेंस कंपनी लिमिटेड (आईडीएफसी) और इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (आईएलएंडएफएस) सहित कई आईपीओ के अनियमित व्यापार में शामिल था.
इस मामले में शाह परिवार ने अपने खिलाफ़ आरोपों का खंडन या पुष्टि किए बिना एक समझौते का प्रस्ताव रखा, जिसे सेबी ने स्वीकार कर लिया. 2012 में, परिवार ने समझौता शुल्क के रूप में 1.34 करोड़ रुपये और गलत तरीके से अर्जित लाभ की वापसी के रूप में 1.92 करोड़ रुपये का भुगतान करके मामले का निपटारा किया. वहीं, बाहुबली शाह ने अपने खिलाफ मामले का निपटारा करने के लिए 42.74 लाख रुपये का भुगतान किया.
हालांकि, जांच एजेंसियों की तरफ से कार्रवाई को लेकर अब तक सार्वजनिक तौर पर कोई जानकारी साझा नहीं की गई है.
इस कार्रवाई के पीछे सेबी के केस से ज्यादा भी कुछ है. क्योंकि अगर मामला सिर्फ आईपीओ से जुड़ा होता तो श्रेयांश शाह, बाहुबली शाह और दूसरे मालिकों के यहां जांच होती, अख़बार, न्यूज़ चैनल और डिजिटल मीडिया के दफ्तरों में जांच टीम क्यों भेजी जाएगी.
आयकर विभाग की जांच के दौरान गुजरात समाचार टीवी चैनल के दफ्तर में मौजूद रहे एक पत्रकार ने बताया कि अधिकारियों ने सभी टीम हेड्स को बुलाकर ख़बर चलाने का प्रोसेस पूछा. वो जानकारी मांग रहे थे कि ख़बरें कहां से और कैसे आती है. सैलरी कहा से आती है? पैसे कहां से आते हैं? जीएसटीवी के संपादक से आईटी के अधिकारियों ने पूछा कि आपके पास आईफोन क्यों नहीं है? आईफोन आपने घर पर रखा है क्या? घर का पता दीजिए. ऐसे में शक होता है कि यह जांच गुजरात समाचार की पत्रकारिता से जुड़ी है.
राष्ट्रीय मीडिया की चुप्पी और गुजरात समाचार का सवाल
गौरतलब है कि 10 मई की शाम को विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर की जानकारी दी. इसके दो दिन बाद गुजरात समाचार ने 12 मई को अपने संपादकीय में इस सीज़फायर को लेकर सवाल उठाए. अखबार ने पहलगाम में 26 भारतीय नागरिकों की हत्या को लेकर लिखा- ‘‘बिना कोई खुफिया जानकारी के इतना बड़ा हमला कैसे हो सकता है. एक राज्य जो अपनी इच्छानुसार कोई भी जानकारी प्राप्त कर सकता है. उसे इतनी बड़ी आतंकी घटना का कोई सुराग नहीं मिला? यह स्थल भारी पर्यटकों को आकर्षित करता है. कश्मीर में स्थित है. जोखिम के बावजूद वहां सेना, बीएसएफ या पुलिस चौकी नहीं थी.’’

इस संपादकीय में प्रधानमंत्री मोदी की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए गए है- ‘‘प्रधानमंत्री तब (पहलगाम आतंकी हमले) खाड़ी देशों की यात्रा पर थे. अपनी यात्रा को रोककर जल्दी भारत लौट आए. उन्होंने एयरपोर्ट पर ही एक मीटिंग बुलाई. माहौल ऐसा बनाया गया कि जैसे कार्रवाई की कोई कार्ययोजना बनाई जा रही है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अगले दिन वो बिहार गए. एक रैली को संबोधित किया. वहां पहलगाम हमले पर बात की लेकिन घटनास्थल पर नहीं गए और न ही पीड़ितों या उनके परिजनों से मिले.’’
इसके बाद भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान के प्रस्तावित युद्धविराम को मान लेने की आलोचना करते हुए कहा गया कि साल 1971 में इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे. मोदी के पास उससे भी ज़्यादा शक्ति और क्षमता है. ये भी पाकिस्तान के दो टुकड़े कर सकते थे लेकिन आखिर उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया?
लगभग आधे पेज के संपादकीय जिसका शीर्षक था ‘जनता जवाब मांग रही है, पाकिस्तान के साथ युद्धविराम क्यों?’ इसमें भारत सरकार से कई गंभीर सवाल पूछे गए.
सिर्फ इतना ही नहीं. ईडी और आईटी की जांच और बाहुबली शांतिलाल शाह की गिरफ्तारी की कार्रवाई के बाद भी गुजरात समाचार के तेवर और ख़बरों के चयन में कोई बदलाव नजर नहीं आया.
भारत सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर और पाकिस्तान की आतंकवादी हरकतों पर दुनिया के देशों को भारतीय पक्ष समझाने के लिए सांसदों का सात प्रतिनिधिमंडल रवाना किया है. इसके एक ग्रुप में पूर्व विदेश राज्यमंत्री और पत्रकार एमजे अकबर का भी नाम था. महिलाओं ने इसकी आलोचना की. गुजरात समाचार ने ‘‘मीटू आरोपों के बाद एमजे अकबर की पीएम मोदी की टीम में वापसी, 7 साल पहले छोड़ना पड़ा था मंत्री पद’’ शीर्षक से ख़बर प्रकाशित की.
19 मई को एक बार फिर से गुजरात समाचार में एक ख़बर प्रकाशित हुई जो मोदी और भाजपा के ऊपर सीधा निशाना था. इसका शीर्षक था- ‘‘देशभर में बहिष्कार, गुजरात में स्वागत: पाकिस्तान समर्थक तुर्किये के साथ गुजरात सरकार का व्यापार समझौता.’’

भारत-पाकिस्तान संघर्ष के बीच तुर्किये ने पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया. उसके बाद से तुर्किये का विरोध देखने को मिल रहा है. जेनएयू और जामिया मिलिया इस्लामिया ने तुर्किये के साथ अपने समझौते रद्द कर दिए हैं.
गुजरात समाचार की ख़बर के मुताबिक, तुर्किये की कंपनियों ने गुजरात में भारी निवेश किया है, उदाहरण के लिए, साणंद के पास एक तुर्किये कंपनी एक भारतीय कंपनी के साथ साझेदारी में घरेलू उपकरण बना रही है. इसके अलावा, निर्माण क्षेत्र में अग्रणी मानी जाने वाली एक तुर्किये कंपनी इस समय गुजरात में सरकारी-निजी परियोजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. इसी तरह तमाम ख़बरें गुजरात समाचार लगातार करता आ रहा था, जिससे भाजपा के अंदर नाराजगी थी.

गुजरात समाचार ने प्रदेश में बेरोजगारी को लेकर भी लगातार रिपोर्टिंग की है. इसके निशाने पर अक्सर नरेंद्र मोदी का दिलअजीज़ वाइब्रेंट गुजरात इवेंट भी रहा.
14 मई 2024 को गुजरात समाचार ने बेरोजगारी की समस्या पर टिप्पणी करते हुए बताया- ‘‘वाइब्रेंट गुजरात रोजगार का हब बन गया है. गुजरात सरकार दावे कर रही है कि गुजरात में रोजगार के कई अवसर हैं, लेकिन हकीकत यह है कि यहां बेरोजगार नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. जहां पीएसआई और लोकरक्षक के लिए कुल 12,272 पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई है, इसके लिए पुलिस भर्ती बोर्ड को 15 लाख से अधिक आवेदन प्राप्त हुए हैं. इससे गुजरात में बेरोजगारी की असली तस्वीर सामने आई है.
इसी तरह जुलाई 2024 में गुजरात समाचार ने बताया कि उद्योगों के लिए रेड कार्पेट बिछाए गए, वाइब्रेंट गुजरात समिट पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं. दावे किए जा रहे हैं कि हजारों युवाओं को रोजगार मिलेगा, लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि विकसित राज्य गुजरात में बेरोजगारी चरम पर पहुंच गई है. आज भी राज्य में 2.49 लाख शिक्षित युवा नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. गुजरात सरकार ने विधानसभा में बताया कि पिछले दो सालों में गुजरात में सिर्फ 32 शिक्षित युवाओं को ही सरकारी नौकरी मिल पाई है.

सिर्फ अख़बार ही नहीं गुजरात समाचार टीवी भी सरकार की आलोचना से परहेज नहीं करता. जैसे तीन महीने से पानी के समस्या से जूझते गांव की कहानी या सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार से जुड़ी ख़बरें. प्रदेश सरकार के मंत्री बचुभाई खबड़ के बेटे को गिरफ्तार किया गया. इसको लेकर गुजरात समाचार ने प्राइम टाइम में शो किया.
आलम ये है कि बीते डेढ़ सालों से प्रदेश भाजपा ने अपना प्रवक्ता गुजरात समाचार टीवी पर भेजना बंद कर दिया है. हालांकि, गुजरात भाजपा के संयोजक यग्नेश दवे बताते हैं कि आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष इसुदान गढ़वी गुजरात समाचार पर शो करते हैं. उनके कार्यक्रम में भाजपा का कोई प्रवक्ता नहीं जाता है. इसके अलावा वहां दूसरा कोई कार्यक्रम होता नहीं है. गढ़वी राजनीति में आने से पहले गुजरात के जाने माने पत्रकार थे.
हमने दवे के आरोपो की पड़ताल की. गुजरात समाचार के एक पत्रकार कहते हैं, ऐसा नहीं है. गढ़वी के अलावा भी जीएसटीवी में कई शो होते हैं. उसमें भी भाजपा के एंकर शामिल नहीं होते हैं. ऐसे में गुजरात समाचार एक कुर्सी खाली छोड़ देता है. कई बार उस पर लिखा होता है, भाजपा नेता की खाली कुर्सी.
मोदी और श्रेयांश शाह में दूरी की वजह?
ऐसा नहीं है कि नरेंद्र मोदी, गुजरात समाचार और श्रेयांश शाह के बीच शुरू से ही रिश्ते ऐसे थे. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात समाचार और मोदी के बीच लड़ाई बहुत पुरानी नहीं है. गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के दौरान भी गुजरात समाचार उनके साथ खड़ा रहा. तब मोदी ने गुजरात समाचार को पत्र लिखकर उनके काम की सराहना की थी.
2002 के गुजरात दंगे के दौरान गुजरात समाचार की पत्रकारिता पर भी सवाल उठे थे. तब एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने दंगे के दौरान मीडिया की भूमिका पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें गुजरात समाचार की कवरेज को ‘‘भड़काऊ, गैर जिम्मेदाराना और मीडिया नैतिकता के सभी स्वीकृत मानदंडों का स्पष्ट उल्लंघन करने वाला बताया था.
सिंगापुर स्थित नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के सैफुद्दीन अहमद ने ‘‘भारत में सांप्रदायिक दंगों के दौरान मीडिया की भूमिका’’ शीर्षक से एक शोध पत्र प्रकाशित किया था. इसमें गुजरात समाचार को हिंदुत्व समर्थक और मुस्लिम विरोधी बताया गया था.
लेकिन 2002 के चुनाव के दौरान ही नरेंद्र मोदी और श्रेयांश शाह के रिश्तों में कड़वाहट आ गई. गुजरात के एक वरिष्ठ पत्रकार इस मतभेद के पीछे विज्ञापन का लेनदेन बताते हैं. कुछ ही समय में यह कड़वाहट दिखने लगी.
बाइब्रेंट गुजरात, जो नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट था. पहली बार इसका आयोजन 28 सितम्बर 2003 को हुआ. तकरीबन डेढ़ साल पहले जिस अख़बार ने नरेंद्र मोदी की तारीफ की थी. उसी ने बाइब्रेंट गुजरात को फ्लॉप बताते हुए इस पर कोई स्टोरी प्रकाशित नहीं की.
गुजरात समाचार में तकरीबन पांच साल काम करने वाले एक पत्रकार कहते हैं, ‘‘एक बात तो सब जानते हैं कि गुजरात समाचार एंटी एस्टेब्लिशमेंट ख़बरें करता हैं. इससे परेशान होकर सरकार ने कई बार विज्ञापन भी बंद कर दिए हैं. विज्ञापन के लिए गुजरात समाचार को हाईकोर्ट जाना पड़ता था. वहां से जीतने के बाद सरकार ने विज्ञापन देना शुरू कर दिया था.’’
यह पत्रकार बताते हैं कि यह अखबार अब भी हिंदुत्व के मुताबिक ही ख़बरें प्रकाशित करता है. यह अख़बार एंटी एस्टेब्लिशमेंट जरूर रहा लेकिन सोशल एस्टेब्लिशमेंट और आर्थिक एस्टेब्लिशमेंट के साथ रहा.
गुजरात सामाचर का विज्ञापन पूर्व में भी बंद किया गया था. अभी भी बीते चार महीने से प्रदेश सरकार गुजरात समाचार अख़बार और टीवी को विज्ञापन नहीं दे रहा है. वहीं, केंद्र सरकार का विज्ञापन तो बीते चार साल से बंद है. इसको लेकर श्रेयांश शाह से न्यूज़लॉन्ड्री ने बात की.
श्रेयांश शाह ने कहा कि एजेंसियां उन्हें ‘परेशान’ कर रही हैं क्योंकि सरकार चाहती है कि गुजरात समाचार ‘उनकी लाइन’ पर चले. गुजरात समाचार का ‘कोई धर्म नहीं है’ और यहां जो कुछ भी छपता है वह किसी ‘व्यक्ति’ पर नहीं बल्कि ‘मुद्दे’ पर आधारित होता है.
वहीं, सरकार द्वारा विज्ञापन रोके जाने के सवाल पर शाह कहते हैं, ‘‘विज्ञापनों पर कई बार प्रतिबंध लगाया गया है, कांग्रेस ने भी प्रतिबंध लगाया है, भाजपा ने भी प्रतिबंध लगाया है. देखिए, सरकार के लिए यही एकमात्र हथियार है. छह साल पहले हम सरकारी विज्ञापनों पर रोक को लेकर कोर्ट गए थे. कोर्ट के आदेश के बाद गुजरात सरकार ने हमें विज्ञापन देना शुरू किया. ऐसा दो बार हुआ है कि हमें विज्ञापन के लिए कोर्ट जाना पड़ा. कोर्ट के आदेश के बाद गुजरात सरकार ने विज्ञापन देना शुरू किया. लेकिन फिर से बंद हो गया.”
पीएम मोदी से मतभेद के सवाल पर शाह कहते है, "कोई झगड़ा नहीं है. सिर्फ एक चीज है कि उन्हें उम्मीद है कि अखबार उनकी तारीफ करे. मेरे दिल में मोदी के लिए कोई शिकायत नहीं है. सिर्फ 2002 ही नहीं मोदी ने 2014 में भी हमारी तारीफ की थी."
वहीं, गुजरात भाजपा के प्रवक्ता जयराज सिंह परमार कहते हैं, ‘‘गुजरात समाचार और भाजपा में कोई वैमनस्य नहीं है. लेकिन वो हर वक़्त नकारात्मक ख़बरें ही चलाते हैं. सरकार कुछ बेहतर काम करती है तो उन्हें वो भी दिखाना चाहिए. गुजरात की जनता भाजपा के साथ है. लेकिन गुजरात समाचार हर वक़्त ऐसी ख़बरें प्रकाशित करता है, जैसे सरकार कोई काम ही नहीं कर रही है.”
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