
15 अप्रैल को शाम के 5 बजे के बाद की बात है. दिल्ली में आईटीओ बस स्टॉप के बगल वाली सड़क पर हमेशा की तरह अफरा-तफरी मची हुई थी. 52 वर्षीय लाइब्रेरियन नरेंद्र कुमार घर जाने के लिए रेलिंग के पास चुपचाप खड़े थे. कुछ मिनट बाद, एक तेज रफ़्तार से आ रही काली महिंद्रा बोलेरो ने उन्हें टक्कर मार दी, वे जमीन पर गिर पड़े. उनके बेटे के अस्पताल पहुंचने तक उनकी मृत्यु हो चुकी थी.
ये दुर्घटना अचानक हुई थी, लेकिन इसके बाद के हालत बहुत ही संदिग्ध हैं.
इस काली बोलेरो का चालक भागा नहीं. कार को जब्त कर लिया गया और उसकी नंबर प्लेट की जानकारी दर्ज की गई. एक ऑटो रिक्शा चालक ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि वह बोलेरो के चालक और कुमार को लोक नायक अस्पताल ले गया. हालांकि, आईपी एस्टेट पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई एफआईआर में यह स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है कि दुर्घटना के समय ऑटो रिक्शा चालक के साथ गया व्यक्ति गाड़ी चला रहा था या नहीं.
लेकिन एफआईआर से यह पुष्टि ज़रूर हुई कि जब दुर्घटना के शिकार व्यक्ति के लिए मेडिकल-लीगल सर्टिफिकेट (एमएलसी) तैयार किया जा रहा था, तब ऑटोरिक्शा चालक के साथ अस्पताल में कोई और भी मौजूद था. इसमें इन दो लोगों के फोन नंबर भी लिखे हैं. पीड़ित परिवार का कहना है कि पुलिस ने बताया कि दुर्घटना के समय बोलेरो का मालिक ही गाड़ी चला रहा था.
लेकिन 10 दिन बीत जाने के बाद भी ये परिवार अंधेरे में है.
पुलिस ने एक भी संदिग्ध का नाम नहीं लिया है. न ही कोई गिरफ्तारी हुई है. यहां तक कि इस बात की भी पुष्टि नहीं हुई कि गाड़ी कौन चला रहा था. आईपी एस्टेट पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर में दुर्घटना में मौत से संबंधित कानूनी प्रावधानों का भी इस्तेमाल नहीं किया गया है. लापरवाही से गाड़ी चलाने से ज्यादा गंभीर कोई आरोप नहीं है.
अब न्यूज़लॉन्ड्री को पता चला है कि ये गाड़ी, टाइम्स ऑफ इंडिया के वरिष्ठ सहायक संपादक मानस प्रतिम गोहेन के नाम पर पंजीकृत है. एफआईआर में दर्ज मोबाइल नंबर भी उन्हीं का है.
जब न्यूज़लॉन्ड्री की टीम लोक नायक अस्पताल पहुंची तो एमएलसी नंबर देखकर एक पुलिस अधिकारी ने पूछा: "क्या यह वही मामला है, जहां पत्रकार की कार ने किसी को टक्कर मारी?" इसके आगे उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की.
न्यूज़लॉन्ड्री ने मानस प्रतिम गोहेन से कई बार संपर्क किया पर उन्होंने हमारी कॉल का कोई जवाब नहीं दिया. फिलहाल, उन्हें इस मामले से संबंधित कुछ प्रश्न भेजे गए हैं. अगर उनका कोई जवाब आता है तो उसे रिपोर्ट में जरूर शामिल किया जाएगा.
‘पुलिस ने हमें उसका नाम नहीं बताया’
जांच अधिकारी एएसआई अमित यादव ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि गाड़ी जब्त कर ली गई है.
यादव ने दावा किया कि इसके मालिक पर "मुकदमा" दर्ज किया गया है, लेकिन कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई है. उन्होंने कहा, "हमें दुर्घटना के बाद बुलाया गया था. हमें नहीं पता कि यह कैसे हुआ." यह पूछने पर कि क्या शराब पीकर या लापरवाही से गाड़ी चलाने की वजह से ऐसा हुआ, उन्होंने बस इतना कहा, "जांच चल रही है."
उधर, कुमार के शोकाकुल परिवार के लिए यह जानकारी काफी नहीं है.
कुमार के परिवार ने दावा किया कि पुलिस ने उन्हें बताया कि संदिग्ध को हिरासत में लिया गया था और 24 घंटे के भीतर उसका नाम बताए बिना उसे छोड़ दिया गया. कुमार के 22 वर्षीय बेटे लविश इंजीनियरिंग के छात्र हैं, उन्होंने कहा, "हमें अभी भी नहीं पता कि ड्राइवर कौन है. पुलिस ने हमें उसका नाम नहीं बताया है. उन्होंने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी साझा नहीं की है."
न्यूज़लॉन्ड्री ने दुर्घटनास्थल का भी दौरा किया, वहां कोई सीसीटीवी कैमरा दिखाई नहीं दे रहा था. लेकिन फिर भी परिवार का तर्क है कि वाहन मौके पर मौजूद होने और पंजीकरण नंबर के माध्यम से मालिक का नाम आसानी से उपलब्ध होने के बावजूद मामले का आगे न बढ़ना समझ से परे लगता है.
कुमार की पत्नी ओमकला ने दंपति की आखिरी बातचीत को याद किया. "उन्होंने फोन करके कहा, 'मुझे नहीं पता कि क्या हुआ है, लेकिन मैं दर्द में हूं.'... वह पहले कई दुर्घटना पीड़ितों को अस्पताल ले जा चुके हैं… पर इस बार, कोई उन्हें नहीं बचा पाया."
क्या ड्राइवर नशे में था?
यह सवाल बुराड़ी में नरेंद्र कुमार के परिवार के घर में गूंज रहा है. ये घर, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान में एक लाइब्रेरियन का काम करने वाले नरेंद्र ने हाल ही में लोन लेकर बनाया है. उनकी 20 वर्षीय बेटी अब घर की दीवारों को देखती रहती है, जिसमें अब हर बीतते दिन के साथ खालीपन बढ़ता जा रहा है.
लविश ने आरोप लगाया कि पुलिस ने ड्राइवर का नमूना तो लिया था, लेकिन इसे परीक्षण के लिए फोरेंसिक विभाग को नहीं भेजा गया. परिवार का मानना है कि अगर शराब पीकर गाड़ी चलाने का मामला साबित होता तो उसे और कड़ी सजा मिल सकती थी.
लेकिन आईपी एस्टेट पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर में दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों से जुड़े प्रावधानों का उल्लेख तक नहीं है. एफआईआर में केवल भारतीय न्याय संहिता की धारा 281 और 125 (ए) का उल्लेख है, जो लापरवाही से गाड़ी चलाने से संबंधित है.
धारा 281 में कहा गया है कि "सार्वजनिक मार्ग पर लापरवाही से वाहन चलाना या सवारी करना" छह महीने की कैद या 1,000 रुपये के जुर्माने या दोनों से दंडनीय है.
धारा 125 (ए) "दूसरों के जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने" से संबंधित है और "गंभीर चोट" के मामले में तीन साल या 10,000 रुपये के जुर्माने या दोनों से दंडनीय है.
एफआईआर में धारा 106 का उल्लेख नहीं है, जो कहती है कि लापरवाही से या गलत तरीके से गाड़ी चलाते हुए किसी की जान लेना (गैर इरादतन हत्या नहीं) अपराध है, उसके लिए पांच साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है.
धारा 106 (2) के तहत, अगर आरोपी ऐसी घटना की सूचना पुलिस या मजिस्ट्रेट को नहीं देता है तो उसे 10 साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है.
मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185 के तहत, शराब पीकर वाहन चलाने पर पहली बार अपराध करने पर छह महीने तक की जेल या 10,000 रुपये का जुर्माना और दोबारा अपराध करने पर दो साल तक की जेल या 15,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है.
दिल्ली उच्च न्यायालय के वकील योगेश गोयल के अनुसार, "अगर मामला नशे में गाड़ी चलाने का है तो मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185 भी जोड़ी जाती है. सिर्फ तेज रफ्तार से गाड़ी चलाने (जिससे मौत हो) के मामलों में बीएनएस की धारा 106 लगाई जाती है."
न्यूज़लॉन्ड्री ने सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट के डीसीपी को अपने सवाल भेजे हैं, जिसमें ड्राइवर की पहचान, अल्कोहल टेस्ट की हैंडलिंग और एफआईआर के बारे में जवाब मांगा गया है. जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
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