Get all your news in one place.
100’s of premium titles.
One app.
Start reading
Newslaundry
Newslaundry
प्रत्युष दीप

प्रधानमंत्री आवास से चंद किलोमीटर दूर, दिल्ली की झुग्गियों के आसपास आज भी खुले में शौच

हर सुबह प्रधानमंत्री जब दिल्ली में होते हैं तो 7, लोक कल्याण मार्ग यानि अपने सरकारी आवास में जागते हैं. करीब 12 एकड़ में फैले इस आवास में बाग-बगीचे हैं और मोर जैसे सुंदर परिंदे हैं. इनके अलावा भी कई जीव-जंतु यहां कि सुंदरता में चार-चांद लगाते हैं. 

वहीं, दूसरी तरफ़ करीब 6 किलोमीटर दूर, गुन्‍नू नाम की लड़की अपनी झोपड़ी में एक फट्टे से बने बिस्तर पर उठती है. फिर वो आधा किलोमीटर, कभी-कभी उससे भी ज़्यादा दूर चलती है ताकि कोई चलने लायक टॉयलेट मिल सके.

गुन्‍नू सोनिया कैंप में रहती है. यह कैंप दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड की तरफ से आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त 675 झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों में से एक है. ये बस्ती 5,285 वर्ग मीटर में फैली हुई है. इसका लोकेशन न सिर्फ़ अहम है, बल्कि हैरान करने वाला भी है. ये बिल्कुल न‍िवेदिता कुंज के सामने है. निवेदिता कुंज साउथ दिल्ली के आर.के. पुरम सेक्टर-7 में आला अफ़सरों का सरकारी आवास है और तमिल संगम मार्ग के साथ लगता हुआ है. 

राजधानी की सत्ता के गलियारों के साए में बसी ये बस्ती, एक और ही दिल्ली की कहानी बयां करती है. गुन्‍नू की उम्र 18 साल है. उन्हें अक्सर किसी टॉयलेट का इस्तेमाल करने का मौका मिल ही जाता है. लेकिन इस बस्ती में बाकी बहुत से लोगों के लिए इतना इंतज़ार करना मुमकिन नहीं होता. साफ-सफाई की कोई सीधी सुविधा ना होने की वजह से, कई लोग मजबूरी में अपने घर के ठीक बाहर वाले फुटपाथ पर ही शौच कर लेते हैं.

कुछ किलोमीटर दूर, दिल्ली कैंटोनमेंट के पास किर्बी प्लेस में रहने वाले लोगों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उनके पास कोई और उपाय नहीं होता सिवाय इसके कि पास के रिज जंगल की तरफ शौच के लिए जाएं. इलाके में जो सामुदायिक टॉयलेट हैं, वो या तो खराब पड़े हैं या इस्तेमाल के लायक नहीं हैं. और चूंकि वहां की गलियों में सीवर लाइनें नहीं हैं, इसलिए किसी भी घर में निजी टॉयलेट की सुविधा नहीं है.

स्वच्छ भारत मिशन के तहत 'ओपन डिफेकेशन फ्री++' घोषित किए जाने के बावजूद, दिल्ली की बस्तियां जैसे सोनिया कैंप और किर्बी प्लेस आज भी बुनियादी साफ-सफाई की भारी कमी से जूझ रही हैं. 

पीएम मोदी की रिहाइश और बड़े अफ़सरों के घरों से बस कुछ किलोमीटर के फ़ासले पर यहां के बाशिंदों को खुले में शौच करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, क्योंकि सार्वजनिक टॉयलेट या तो बंद हैं, टूटे हुए हैं, या बहुत दूर हैं. सबसे ज्यादा परेशानी से महिलाओं और बच्चों को दो-चार होना पड़ता है.

सरकारी रिकॉर्ड में हजारों नए टॉयलेट बनाने और करोड़ों रुपये के फंड की बात कही जाती है. लेकिन ज़मीन पर हालात कुछ और ही हैं. स्वच्छ भारत के वादे अब भी शहर के सबसे कमज़ोर तबके के लिए दूर की कौड़ी बना हुआ है.

कागज़ों पर सब चंगा, मगर ज़मीन पर नहीं

केंद्र सरकार की स्वच्छ भारत मिशन वेबसाइट पर बड़े गर्व से लिखा है कि न्यू दिल्ली ज़िला, जिसमें सोनिया कैंप और किर्बी प्लेस दोनों आते हैं सिर्फ़ ODF नहीं, बल्कि ODF++ है. इसका मतलब ये माना गया है कि सभी सामुदायिक और सार्वजनिक टॉयलेट 'ठीक से काम कर रहे हैं और अच्छी तरह से रख-रखाव में हैं' और सारी सीवेज 'सुरक्षित तरीके से मैनेज और ट्रीट की जा रही है'.

संसद में साझा किए गए सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि 2021 से दिसंबर 2024 तक, दिल्ली सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत टॉयलेट बनाने के लिए मिले 10 करोड़ रुपये में से एक भी रुपया खर्च नहीं किया.

इसके अलावा, 2018 की एक कैग (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) रिपोर्ट में ये सामने आया कि उस वक़्त की दिल्ली सरकार ने 2016 से अब तक टॉयलेट बनाने के लिए स्वच्छ भारत मिशन के तहत मिले 40.31 करोड़ रुपये भी इस्तेमाल नहीं किए थे.

दिल्ली सरकार की ओर से फंड्स के इस्तेमाल नहीं करने को लेकर न्यूज़लॉन्ड्री ने जानकारी के लिए आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज से संपर्क किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

आंकड़े आगे बताते हैं कि 2021-22 में दिल्ली को स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत कोई फंड्स नहीं मिले.

इसके बाद, न्यूज़लॉन्ड्री ने स्वच्छ भारत मिशन शहरी के संयुक्त सचिव और मिशन डायरेक्टर रूपा मिश्रा से भी इस सवाल का जवाब जानने के लिए संपर्क किया कि दिल्ली को फंड्स क्यों जारी नहीं किए गए, लेकिन फिर से कोई जवाब नहीं मिला.

इसके बावजूद, दिल्ली ने पिछले पांच सालों में 9,352 से ज़्यादा टॉयलेट्स (व्यक्तिगत, सामुदायिक, और सार्वजनिक) बनाए हैं. इन प्रयासों में दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड का अहम हाथ है, जो झुग्गी बस्तियों में साफ-सफाई के लिए जन सुविधा परिसर योजना चलाता है.

दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड (डीएसयूआईबी) के मुताबिक, पूरे शहर में ऐसे 685 जन सुविधा परिसर हैं. आर.के. पुरम में 14 हैं, लेकिन सोनिया कैंप में एक भी नहीं है. किर्बी प्लेस में डीएसयूआईबी के रिकॉर्ड्स के मुताबिक, एक जन सुविधा परिसर है, जिसमें 40 टॉयलेट सीट्स हैं. हालांकि, ये 900 से ज़्यादा परिवारों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए काफ़ी नहीं है.

सोनिया कैंप में स्थित एक सामुदायिक टॉयलेट

‘खुले में शौच के अलावा कोई चारा नहीं’

प्रधानमंत्री के आवास से मुश्किल से छह किलोमीटर की दूरी पर, सोनिया कैंप दिल्ली की कुछ सबसे आलीशान सरकारी कॉलोनियों के बीच बसी हुई है, जहां आला अफ़सर रहते हैं. लेकिन इस सुविधा और ऐश्वर्य के बीच, बस्ती के करीब 150 घरों के लोग नजदीकी टॉयलेट की कमी की वजह से खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं और वो भी तमिल संगम मार्ग के फुटपाथ पर.

कैंप में रहने वाली पूजा ने अपनी परेशानी न्यूज़लॉन्ड्री के साथ साझा की. वह कहती हैं,  'हममें से ज़्यादातर लोग दिन में मोहन सिंह मार्केट के सार्वजनिक टॉयलेट का इस्तेमाल करते हैं. ये सुबह 6 बजे के बाद खुलता है. तो, रात से पहले शौच के लिए कहां जाएं?' 

मोहन सिंह मार्केट झुग्गी से करीब आधा किलोमीटर दूर है और वहां दो सार्वजनिक टॉयलेट्स हैं. सोनिया कैंप के पास चार में से तीन सार्वजनिक टॉयलेट्स बंद कर दिए गए हैं. जो एक टॉयलेट अब भी तकनीकी तौर पर काम कर रहा है, वो इतनी बुरी हालत में है कि लोग कहते हैं कि वो इस्तेमाल के लायक नहीं है. इस टॉयलेट में ज्यादातर सीट्स बंद पड़ी हैं और वहां से बदबू आती है.

पूजा ने कहा, 'हमारे पास कोई और चारा नहीं है सिवाय इसके कि मोहन सिंह मार्केट या पेट्रोल पंप स्टेशन पर जाकर टॉयलेट का इस्तेमाल करें. लेकिन रात में, हमारे पास कोई और रास्ता नहीं होता, सिवाय इसके कि खुले में फुटपाथ पर शौच करें.'

बस्ती में किसी भी घर में निजी टॉयलेट नहीं हैं. यहां रहने वाले एक और निवासी धारा भाई का कहना है कि 'समस्या जगह की है.' धारा भाई कहते हैं, 'लोग यहां छोटे 12 वर्ग मीटर के कमरों में रहते हैं. तो, व्यक्तिगत टॉयलेट बनाने के लिए जगह नहीं होती.'

डीएसयूआईबी के आंकड़ों के मुताबिक, कैंप में 150 घर हैं और यहां के बाशिंदों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि यहां करीब 1,400 लोग रहते हैं. कई निवासियों ने बताया कि वो ढोलक बजाने का काम करते हैं, जो शादियों और दूसरे कार्यक्रमों में होता है. 

धारा भाई ने कहा, 'सभी सार्वजनिक टॉयलेट 9 बजे के बाद बंद हो जाते हैं. तो जब हम रात बारह बजे कार्यक्रमों से लौटते हैं, तो सड़क पर ही शौच करने के अलावा हमारे पास कहां और विकल्प होता है?' 

लेकिन कैंप पर पड़े इस बोझ का सबसे ज़्यादा असर महिलाओं पर पड़ता है. कैंप में रहने वाली 55 साल की प्रेम कहती हैं, 'पुरुष तो आसानी से बाहर जाकर शौच कर सकते हैं, लेकिन हम महिलाओं को असली चुनौती का सामना करना पड़ता है, खासकर युवतियों को. रात के समय हम सुरक्षा के डर से हिचकिचाती हैं.' 

उन्होंने गुन्‍नू की तरफ इशारा किया, जो अभी-अभी उठकर मोहन सिंह मार्केट में टॉयलेट की तरफ दौड़ रही थी. प्रेम ने कहा,  'देखो कैसे ये लड़कियां शौचालय के लिए दौड़ रही हैं. लेकिन एक बुजुर्ग महिला इतनी दूर कैसे जा सकती है?' 

सोनिया कैंप के इकलौता काम कर रहे टॉयलेट के बारे में उन्होंने कहा, 'ये बस नाम के लिए है सारी सीट्स जाम पड़ी हैं. वहां एक मिनट भी खड़ा नहीं रह सकते.'

प्रेम ने यह भी बताया कि दूसरा काम करने वाला टॉयलेट इंद्रप्रस्थ सीएनजी स्टेशन पर है, जो करीब 300 मीटर दूर है. उन्होंने कहा, 'वहां के टॉयलेट ज्यादा साफ होते हैं, इसलिए ज्यादातर लोग वहीं जाते हैं. यहां के काम करने वाले टॉयलेट में तो आप घुस भी नहीं सकते.' 

60 साल की शांति ने कहा कि वह पिछले दो-तीन सालों से खुले में शौच कर रही हैं. वह कहती हैं, 'ये टॉयलेट पिछले तीन साल से खराब पड़े हैं. दो-तीन सीटें अभी काम कर रही हैं, लेकिन वो अक्सर ओवरफ्लो हो जाती हैं और इस्तेमाल के लायक नहीं रहतीं.' 

खुले में शौच करने की अपनी शर्मिंदगियों के बारे में शांति ने कहा, 'कभी-कभी, जो गाड़ियां हमारे पास से गुजरती हैं, वो हमारे पास रुक जाती हैं, जिससे हम शर्मिंदगी महसूस करते हैं.'

किर्बी प्लेस के पास खराब पड़े मोबाइल टॉयलेट्स

ना के बराबर बदलाव

आर.के. पुरम से तक़रीबन नौ किलोमीटर दूर, दिल्ली कैंटोनमेंट में स्थित किर्बी प्लेस, सरकार की स्वच्छ भारत मिशन की हकीकत को बयां करता एक और मामला है. ODF++ ज़ोन के तौर पर दर्ज होने के बावजूद, यहां के निवासी सालों से पास के रिज इलाके में शौच करने को मजबूर हैं, क्योंकि इलाके में काम करने वाले शौचालयों की भारी कमी है.

2022 में न्यूज़लॉन्ड्री ने रिपोर्ट किया था कि कैसे किर्बी प्लेस के लोग खुले में शौच के लिए मजबूर थे, क्योंकि मोबाइल टॉयलेट वैन या तो पूरी तरह खराब थीं या इस्तेमाल के लायक नहीं थीं. ये बस्ती दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड के अंतर्गत आती है, जो रक्षा मंत्रालय के डायरेक्टरेट जनरल डिफेन्स एस्टेट्स के अधीन एक सिविक बॉडी है.

दो साल से ज़्यादा वक्त बीत जाने के बाद भी हालात में ज़रा सा भी बदलाव नहीं आया है. इलाके में अब भी मोबाइल टॉयलेट वैन तैनात हैं, लेकिन ज़्यादातर या तो खराब पड़ी हैं या उनमें बुनियादी चीज़ें जैसे सीढ़ियां या दरवाज़े ही नदारद हैं. ऐसे में ये टॉयलेट्स पूरी तरह से बेकार साबित हो रहे हैं, ख़ासकर औरतों और बुज़ुर्गों के लिए इसका कोई इस्तेमाल नहीं बच जाता है.

बस्ती में रहने वाली फूल देवी कहतीं हैं, 'ये टॉयलेट्स तक़रीबन दो साल से खराब पड़े हैं. आगे खड़े दो मोबाइल टॉयलेट्स में से सिर्फ दो-तीन सीटें ही काम कर रही हैं. इसलिए हम जंगल में जाकर शौच करते हैं.' 

किर्बी प्लेस में 650 से ज़्यादा परिवार रहते हैं, जिनमें से कई लोग अस्थायी और जुगाड़ू झोपड़ियों में रहते हैं. चूंकि ये ज़मीन रक्षा मंत्रालय की है, इसलिए यहां किसी भी तरह का पक्का निर्माण की इजाज़त नहीं है. इसमें ईंट-पत्थर से बने टॉयलेट भी शामिल हैं. इसी वजह से, मोबाइल टॉयलेट वैन ही साफ-सफाई का इकलौता ज़रिया हैं और वही भी नाकाफ़ी साबित हो रही हैं.

इसी बस्ती की एक और रहवासी शीला देवी का कहना है, 'सिर्फ एक ही सीट चल रही है. बाकी सब तो कबाड़ हैं, लेकिन कोई इन्हें हटाने भी नहीं आता.' 

वह आगे कहतीं हैं, 'हम लोग तो कब से कह रहे हैं कि इन मोबाइल टॉयलेट वैन को यहां से हटा दो और उसकी जगह कच्चे टॉयलेट ही बना दो. वो ज्यादा बेहतर होगा, क्योंकि ये मोबाइल टॉयलेट्स तो यूं ही बेकार पड़े हैं, बिना किसी काम के.'

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस मामले पर दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड के अधिकारियों से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की, लेकिन रिपोर्ट लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला है.

दिल्ली कैंट के आम आदमी पार्टी के विधायक वीरेंद्र कादियान ने ये माना कि किर्बी प्लेस में खुले में शौच के हालात आज भी मौजूद हैं. लेकिन उन्होंने इसके पीछे की वजह बताई, वह कहते हैं, 'मसला ये है कि ये इलाक़ा डिफ़ेंस मिनिस्ट्री की ज़मीन पर है.'

उन्होंने कहा, 'हमें इस इलाके को डेवलप करने की इजाज़त नहीं मिलती. मैं बार-बार सरकार को लिख रहा हूं कि कम से कम बुनियादी सहूलियतें तो दी जाएं, जो कि इज़्ज़तदार ज़िंदगी जीने के हक़ का हिस्सा हैं.'

कादियान ने दावा किया, 'मैंने पूरी कोशिश की है कि लोगों को सहूलियतें मिलें. हमने इस बस्ती में 60 सीट वाला टॉयलेट बनवाया है और बिजली के लिए सोलर सिस्टम भी लगाया है. इसके अलावा हमने कैंटोनमेंट बोर्ड के ज़रिए मोबाइल टॉयलेट वैन भी वहां तैनात की हैं. इससे पहले इस इलाके में कुछ भी नहीं था.'

उन्होंने बताया कि वो झुग्गी बस्ती की परेशानियों को लेकर कई बार सरकार को लिख चुके हैं. उन्होंने कहा, 'मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं कि बस्ती के हालात बेहतर हो सकें.'

इधर आर.के. पुरम की सोनिया कैंप बस्ती, जो पहले से ही साफ़-सफाई की कमी से जूझ रही है, वहां दिल्ली नगर निगम के पार्षद धर्मवीर सिंह ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि टॉयलेट्स का दोबारा निर्माण जारी है. 

उन्होंने कहा, 'नई सरकार आ चुकी है, और कुछ ही महीनों में नए टॉयलेट्स का काम पूरा हो जाएगा,' मौजूदा हालात के लिए उन्होंने कुछ निवासियों को ज़िम्मेदार ठहराया. वह कहते हैं, 'ये टॉयलेट्स 2017 में स्वच्छ भारत मिशन के तहत बनाए गए थे. हमने समय-समय पर इनकी मरम्मत और देखभाल भी की है. लेकिन कुछ शरारती लोग इन्हें नुकसान पहुंचाते हैं. हालात सुधारने की कई कोशिशें हुईं, लेकिन हालात जस के तस हैं.'

अनुवाद- चंदन सिंह राजपूत

मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित ख़बर को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

Newslaundry is a reader-supported, ad-free, independent news outlet based out of New Delhi. Support their journalism, here.

Sign up to read this article
Read news from 100’s of titles, curated specifically for you.
Already a member? Sign in here
Related Stories
Top stories on inkl right now
One subscription that gives you access to news from hundreds of sites
Already a member? Sign in here
Our Picks
Fourteen days free
Download the app
One app. One membership.
100+ trusted global sources.