
दुनिया की नज़रें जब डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण पर थी तब भारत में एक सवाल सबके जहन में था. क्यों पीएम मोदी उस कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं थे. हालांकि, मोदी बाद में ट्रंप से मिलने गए लेकिन उसके बाद जो कुछ हुआ वह ज्यादा महत्वपूर्ण है. अमेरिका के साथ ट्रेड डील अटकी हुई है और भारत पर पचास फीसदी का टैरिफ जारी है. भारतीयों का बेड़ियों में डिपोर्टेशन भी एक तल्खी के रूप में सामने आया. कई लोग मानते हैं कि भारत-अमेरिका के रिश्तों में असली झटका भारत और पाकिस्तान के टकराव के बाद लगा.
वजहें कई हो सकती हैं लेकिन सवाल एक ही है. आखिर भारत की विदेश नीति में बार-बार ऐसी चूक क्यों हो रही है. ट्रंप किसी न किसी बहाने भारत को नीचा क्यों दिखा रहे हैं? लोग यह भी मानते हैं कि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को गहरा धक्का पहुंचा है? इसके पीछे राष्ट्रपति ट्रंप की लगातार उल्टी सीधी बयानबाजी और दुनिया में घटती भारत की कूटनीतिक मौजूदगी है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद हालात और मुश्किल हो गए हैं और इतना सब होने के बावजूद डॉ. एस.. जयशंकर अब भी देश के विदेश मंत्री बने हुए हैं. तो सवाल सिर्फ़ ये नहीं कि विदेश नीति बेपटरी क्यों हो चुकी है. सवाल ये भी है कि विदेश मंत्रालय के नेतृत्व में कोई बदलाव क्यों नहीं हो रहा?
इन सवालों के जवाब खोजने के लिए हमने लटियन दिल्ली की तमाम गलियों, दरवाजों पर दस्तक दी. पूर्व और वर्तमान राजनयिकों, विदेश नीति के लंबरदारों और विदेश मंत्रालय की खोज परख रखने वाले पत्रकारों से बात की. हम ये समझना चाहते थे कि आखिर एस जयशंकर के दौर में भारत की कूटनीति किस गड्ढे में गिरती जा रही है. ऐसा क्यों है कि भारत के विदेश मंत्री की छवि एक स्वतंत्र राजनेता की बजाय प्रधानमंत्री मोदी के निजी विदेश नीति प्रवक्ता की बन गई है?
तो कौन हैं एस जयशंकर? और वो कैसे विदेश मंत्री के पायदान तक पहुंचे? विदेश सेवा के पेशेवर अफसर होने के बावजूद विदेश मंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल बेहद असफल, भटका हुआ और दिशाहीन क्यों नजर आ रहा है?
भारत की विदेश नीति और जयशंकर की भूमिका पर फुरकान अमीन की यह रिपोर्ट इन सवालों के अलावा भी कई परतों को खोलती है.
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