Get all your news in one place.
100’s of premium titles.
One app.
Start reading
Newslaundry
Newslaundry
विकास जांगड़ा

अटकती ट्रेड डील, बढ़ते टैरिफ और गिरती साख: विदेश नीति में कहां चूके जयशंकर?

दुनिया की नज़रें जब डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण पर थी तब भारत में एक सवाल सबके जहन में था. क्यों पीएम मोदी उस कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं थे. हालांकि, मोदी बाद में ट्रंप से मिलने गए लेकिन उसके बाद जो कुछ हुआ वह ज्यादा महत्वपूर्ण है. अमेरिका के साथ ट्रेड डील अटकी हुई है और भारत पर पचास फीसदी का टैरिफ जारी है. भारतीयों का बेड़ियों में डिपोर्टेशन भी एक तल्खी के रूप में सामने आया. कई लोग मानते हैं कि भारत-अमेरिका के रिश्तों में असली झटका भारत और पाकिस्तान के टकराव के बाद लगा.

वजहें कई हो सकती हैं लेकिन सवाल एक ही है. आखिर भारत की विदेश नीति में बार-बार ऐसी चूक क्यों हो रही है. ट्रंप किसी न किसी बहाने भारत को नीचा क्यों दिखा रहे हैं? लोग यह भी मानते हैं कि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को गहरा धक्का पहुंचा है? इसके पीछे राष्ट्रपति ट्रंप की लगातार उल्टी सीधी बयानबाजी और दुनिया में घटती भारत की कूटनीतिक मौजूदगी है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद हालात और मुश्किल हो गए हैं और इतना सब होने के बावजूद डॉ. एस.. जयशंकर अब भी देश के विदेश मंत्री बने हुए हैं. तो सवाल सिर्फ़ ये नहीं कि विदेश नीति बेपटरी क्यों हो चुकी है. सवाल ये भी है कि विदेश मंत्रालय के नेतृत्व में कोई बदलाव क्यों नहीं हो रहा?

इन सवालों के जवाब खोजने के लिए हमने लटियन दिल्ली की तमाम गलियों, दरवाजों पर दस्तक दी. पूर्व और वर्तमान राजनयिकों, विदेश नीति के लंबरदारों और विदेश मंत्रालय की खोज परख रखने वाले पत्रकारों से बात की. हम ये समझना चाहते थे कि आखिर एस जयशंकर के दौर में भारत की कूटनीति किस गड्ढे में गिरती जा रही है. ऐसा क्यों है कि भारत के विदेश मंत्री की छवि एक स्वतंत्र राजनेता की बजाय प्रधानमंत्री मोदी के निजी विदेश नीति प्रवक्ता की बन गई है?

तो कौन हैं एस जयशंकर? और वो कैसे विदेश मंत्री के पायदान तक पहुंचे? विदेश सेवा के पेशेवर अफसर होने के बावजूद विदेश मंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल बेहद असफल, भटका हुआ और दिशाहीन क्यों नजर आ रहा है? 

भारत की विदेश नीति और जयशंकर की भूमिका पर फुरकान अमीन की यह रिपोर्ट इन सवालों के अलावा भी कई परतों को खोलती है.  

बीते पच्चीस सालों ने ख़बरें पढ़ने के हमारे तरीके को बदल दिया है, लेकिन इस मूल सत्य को नहीं बदला है कि लोकतंत्र को विज्ञापनदाताओं और सत्ता से मुक्त प्रेस की ज़रूरत है. एनएल-टीएनएम को सब्स्क्राइब करें और उस स्वतंत्रता की रक्षा में मदद करें.

Newslaundry is a reader-supported, ad-free, independent news outlet based out of New Delhi. Support their journalism, here.

Sign up to read this article
Read news from 100’s of titles, curated specifically for you.
Already a member? Sign in here
Related Stories
Top stories on inkl right now
Our Picks
Fourteen days free
Download the app
One app. One membership.
100+ trusted global sources.