
गुरुग्राम यानी मिलेनियम सिटी. गगनचुंबी इमारतों से सजा, दिल्ली से सटा एक चमकदार शहर. लेकिन जैसे ही बारिश की चंद बूंदें गिरती हैं, तो इस शहर की चमक धुलने लगती है और सड़कों पर बह रहा पानी इसकी लाचारी सतह पर ले आता है. लंबे-लंबे जाम और पानी में फंसी गाड़ियों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी उस तेजी से तैर रही होती हैं, जितनी तेजी से शहर पानी में ‘डूब’ रहा होता है.
आख़िर ऐसा क्या है कि महज कुछ मिनट की बारिश इसे पंगु बना देती है? क्यों गुरुग्राम हर साल मानसून में जलजमाव और ट्रैफिक जाम का पर्याय बन जाता है?
हमने इस गुत्थी को सुलझाने के लिए टाउन प्लानर्स, लैंडस्केप आर्किटेक्ट्स और शहरी अर्थव्यवस्था के जानकारों से बात की. उन्होंने बताया कि कैसे बिना सोचे-समझे हुए अर्बन डेवलपमेंट, जल निकासी सिस्टम की अनदेखी और बेतरतीब निर्माण ने शहर को इस स्थिति में पहुंचा दिया है.
हमने गुरुग्राम के एकमात्र सिविल अस्पताल का भी जायजा लिया. वहां का हाल और भी चिंताजनक था, चारों ओर पानी भरा हुआ, दुर्गंध और कचरे के ढेर. ऐसी स्थिति में स्वस्थ व्यक्ति भी बीमार हो सकता है, मरीजों की हालत का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं. गुरुग्राम की हालत ऐसी है कि बारिश के बाद इस शहर की बड़ी-बड़ी सोसायटीज़ में बाहर निकलना भी चुनौती बन जाता है. कई-कई घंटों का ट्रैफिक जाम तो जैसे आम बात हो गई है. तो क्या गुरुग्राम विकास का चेहरा है या शहरी कुप्रबंधन की एक मिसाल?
इन तमाम सवालों और ज़मीनी सच्चाइयों से परत उतारती ये ग्राउंड रिपोर्ट.
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