
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में छात्र संघ चुनाव के लिए नई तारीख तय हो गई है. अब 25 अप्रैल को चुनाव होंगे. इससे पहले 18 अप्रैल को इलेक्शन कमेटी ने तोड़फोड़ और मारपीट के आरोपों के बीच चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी. साथ ही सुरक्षा की मांग की थी.
हर साल की तरह इस साल भी पूरे देश की निगाहें इस चुनाव पर हैं क्योंकि जेएनयू के चुनाव का राजनीतिक मैसेज पूरे देश के लिए मायने रखता है. यह तथ्य भी सही है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद से देश के अलग-अलग विश्वविद्यालय परिसरों में दक्षिणपंथी छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) का उभार हुआ है. हालांकि, जेएनयू एक ऐसा संस्थान रहा है, जहां पर एबीवीपी को निराशा ही हाथ लगी है.
साल 2016 से लेकर अब तक एबीवीप जेएनयू छात्र संघ चुनाव में किसी भी पद पर जीत दर्ज करने में सफल नहीं हो सकी है. इसके पीछे का एक बड़ा कारण था लेफ्ट स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशंस का एक गठबंधन में लड़ना. दरअसल, 2016 से लेकर अब तक ऐसा आईसा, एसएफआई, डीएसएफ, पीएसए सहित तमाम लेफ्ट ऑर्गेनाइजेशन यूनाइटेड लेफ्ट फ्रंट के बैनर तले गठबंधन में चुनाव लड़ते थे. लेकिन इस बार यह गठबंधन टूट गया है. एक तरफ आईसा का पैनल है तो दूसरी तरफ एसएफआई मैदान में है. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार एबीवीपी के जीत दर्ज करने की संभावना बढ़ गई है क्योंकि लेफ्ट के वोटों का बंटवारा होगा.
ऐसे में यह चुनाव किस ओर जाएगा हमारी यह वीडियो रिपोर्ट इसी की पड़ताल करती है. साथ ही हम बताएंगे कि वह कौन से मुद्दे हैं, जिनको लेकर लेफ्ट फ्रंट में अलगाव हुआ और इस अलगाव से किसको फायदा होगा.
देखिए हमारी यह वीडियो रिपोर्ट -
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