
निशा पंवार सुबह 5.30 बजे उठती हैं, अपने बच्चों के लिए नाश्ता बनाती हैं, उन्हें स्कूल के लिए तैयार करती हैं और स्कूटी या ऑटो से काम पर जाते वक्त उन्हें स्कूल छोड़ती हैं. वह ज्यादातर समय अपने फोन पर अपनी बुकिंग्स को प्रबंधित करने में लगी रहती हैं. कुछ बुकिंग सुबह 7-7.30 बजे शुरू हो जाती हैं, जिससे उन्हें क्लाइंट के घर जाने से पहले खाने के लिए कई बार समय भी नहीं मिलता.
42 वर्षीय निशा नवी मुंबई में ब्यूटीशियन हैं और अर्बन कंपनी के साथ काम करती हैं. यह एक ऐसा प्लेटफार्म है, जो ग्राहकों को सर्विस देने वालों से जोड़ता है.
यह प्रबंधन का एक ऐसा तंत्र है, जिसमें किसी भी तरह की देरी की इजाज़त नहीं है, चाहे वह ट्रैफिक हो या क्लाइंट के घर पहुंचने में मुश्किल. अगर वे एक या दो मिनट भी लेट हो जाती हैं, तो ग्राहक उनकी रेटिंग कम कर देते हैं या अपॉइंटमेंट को पूरा ही रद्द कर देते हैं. अगर ऐसा होता है, तो यह पैसे की बर्बादी है क्योंकि वह पहले ही अपने आने-जाने में खर्च कर चुकी होती हैं.
उन्होंने कहा, "पांच साल से मैं एक ग्राहक से दूसरे ग्राहक के पास भागते हुए ठीक से खाना खाने पर ध्यान नहीं दे पाई हूं."
लेकिन ऐसी शिष्टता उनके साथ नहीं बरती जाती. उन्होंने कहा, "अगर ग्राहक मीटिंग में शामिल होने, बच्चों को खाना खिलाने या अपनी सास को दवा देने के दौरान हमसे 10-15 मिनट तक इंतजार करने के लिए कहते हैं, तो हमारे पास इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं होता." और अगर ऐसा होता है, तो निशा को अपनी अगली अपॉइंटमेंट पर समय पर पहुंचने के लिए और भी जल्दी होती है.
यही कारण है कि प्लेटफ़ॉर्म-आधारित गिग इकॉनमी के भीतर भारत की पहली महिला कर्मचारियों के नेतृत्व वाली ट्रेड यूनियन, गिग एंड प्लेटफ़ॉर्म सर्विस वर्कर्स यूनियन ने पिछले महीने अर्बन कंपनी के विरोध में दो मुहिम शुरू कीं.
#DryJune मुहिम ने ग्राहकों से अपने कर्मचारियों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए पूरे महीने अर्बन कंपनी का बहिष्कार करने का आह्वान किया. वर्कर का आईपीओ मुहिम के तहत मांग की गई कि कंपनी कर्मचारियों को कंपनी के निर्णय लेने में शामिल करे, कंपनी के मूल्यांकन के बारे में सूचित किए जाने के उनके अधिकार को ध्यान में ले, और उन्हें भविष्य में रियायती मूल्य पर अर्बन कंपनी के शेयर खरीदने की अनुमति दे.
यूनियन की राष्ट्रीय समन्वय और समिति की सदस्य अनुषा के अनुसार, अर्बन कंपनी ने इन मांगों पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
पिछले वर्ष 93 करोड़ रुपये के घाटे के बाद कंपनी ने वित्त वर्ष 2025 में 240 करोड़ रुपये कमाए, जिसमें 211 करोड़ रुपये के टैक्स क्रेडिट की मदद मिली. इस बीच, ‘पार्टनर’ कहे जाने वाले कर्मचारी अपनी कमरतोड़ दिनचर्या जारी रखते हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री ने कंपनी की नीतियों की फितरत को समझने के लिए मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु में 10 अर्बन कंपनी ब्यूटीशियन से बात की. ये सभी महिलाएं हैं. ये सभी, अर्बन कंपनी के ज्यादातर कर्मचारियों की तरह निम्न सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि से आती हैं.
उदाहरण के लिए, बरखा* निशा से 1,300 किलोमीटर से अधिक दूर रहती हैं, लेकिन इन दोनों का कार्यक्रम लगभग एक जैसा ही है. वो सुबह 6 बजे उठती हैं, और नई दिल्ली के जाफराबाद में अपने घर से निकलती हैं ताकि सुबह 7 बजे की अपनी अपॉइंटमेंट के लिए समय पर पहुंच सकें. वो आमतौर पर प्रीत विहार, लक्ष्मी नगर या गगन विहार जाती हैं. उन्हें आने-जाने में 30 मिनट लगते हैं, इसलिए उनके पास खाने या आगे के दिन के लिए खाना पैक करने का भी वक्त नहीं होता.
जब बरखा अपनी अपॉइंटमेंट पूरी कर लेती है, तो उसे आमतौर पर 45 मिनट के भीतर एक नई अपॉइंटमेंट मिल जाती है, जिस वजह से उन्हें खाने के लिए घर जाने का भी वक्त नहीं मिलता. वह अगली अपॉइंटमेंट के लिए निकल जाती है, और फिर अगली, दिन भर यही सिलसिला बना रहता है.
मुंबई में काम करने वाली राशि* ने कहा कि उनका भी यही नियमित कार्यक्रम है, और खाने और बाथरूम ब्रेक लेना खास तौर पर मुश्किल है. राशि ने कहा, "हम औरतें हैं. हम पुरुषों की तरह कहीं भी बाथरूम ब्रेक नहीं ले सकते."
हालांकि, कर्मचारियों को अपॉइंटमेंट को अस्वीकार करने का अधिकार है, लेकिन ऐप का एल्गोरिदम ही ये तय करता है कि आगे क्या होगा.

जितना 'लचीला' लगता है, उतना है नहीं
अर्बन कंपनी के कर्मचारियों को आम तौर पर एक कैलेंडर दिया जाता है, जिसमें वे अपने काम करने के लिए दिन और घंटे अंकित करते हैं. वे अपनी सहूलियत के आधार पर बुकिंग रद्द करने या संभावित बुकिंग को अस्वीकार करने के लिए भी स्वतंत्र हैं. इस प्रकार, कंपनी के पास कोई आधिकारिक छुट्टी नीति नहीं है, क्योंकि काम के दिनों और घंटों की संख्या तकनीकी रूप से लचीली है.
लेकिन कर्मचारियों के अनुसार, कुछ घंटों या दिनों के लिए रद्द करने या निष्क्रिय रहने का मतलब है कि ऐप उन्हें कम बुकिंग या बिल्कुल भी बुकिंग नहीं देता है, जब अन्य कर्मचारी ज्यादा घंटे काम करते हैं या सभी बुकिंग स्वीकार कर लेते हैं.
टेक पत्रकार ध्रुव बटानी ने कहा, “अर्बन कंपनी अपने सर्विस प्रोवाइडर्स को भरोसेमंद मानकों के आधार पर रेटिंग देती है. अगर कोई बार-बार बुकिंग रद्द करता है या एक्टिव नहीं रहता, तो उसकी रेटिंग कम हो जाती है. ऐसे पार्टनर बिज़नेस के लिए जोखिम माने जाते हैं, इसलिए उन्हें नए ऑर्डर या स्लॉट में कम प्राथमिकता दी जाती है. इसका सही फॉर्मूला कंपनी ने सार्वजनिक नहीं किया है, लेकिन ऐसा होना तर्कसंगत लगता है.”
कुछ साल पहले से कामगारों की समस्या और भी जटिल हो गई क्योंकि अर्बन कंपनी ने अपने ऐप पर कामगारों के लिए “ऑटो-असाइन” सुविधा शुरू की थी. अगर कोई कामगार किसी खास दिन काम करने का विकल्प चुनता है, तो उसे काम अपने आप मिल जाता है. हालांकि उन्हें इसे स्वीकार करना ज़रूरी नहीं है, लेकिन कामगारों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया जाता है, चाहे जगह, वक्त या पैसा कुछ भी हो.
डॉली देवी, जो नवी मुंबई में अर्बन कंपनी में ब्यूटीशियन के तौर पर काम करती थीं, ने कहा, “अर्बन कंपनी ने ऑटो-असाइन सुविधा को सिर्फ दिखावे के लिए अनिवार्य नहीं बनाया है.” पिछले साल ऐप के बाहर ग्राहकों के साथ कथित तौर पर अपॉइंटमेंट लेने के कारण उनकी आईडी ब्लॉक कर दी गई थी. “वे लगातार दबाव डालते हैं और हमें हर रोज कॉल करते हैं, जिससे हमें ज्यादा लीड या सेवाओं के लिए ऑटो-असाइन का विकल्प चुनने के लिए मजबूर होना पड़ता है.”
अर्बन कंपनी में ब्यूटीशियनों को दो श्रेणियों में बांटा गया है- प्राइम और लक्ज़. इन दोनों में भी दो उप-श्रेणियां होती हैं- ‘Som’, जहां जॉब्स अपने-आप असाइन हो जाती हैं, और ‘Flexi’, जहां सर्विस प्रोवाइडर को खुद क्लाइंट्स ढूंढ़ने होते हैं. Flexi कैटेगरी में काम करने वालों को आमतौर पर कम लीड्स मिलती हैं, ताकि उन्हें मजबूर किया जा सके कि वे Som में शिफ्ट हों. सभी ब्यूटीशियनों को कुछ तय टारगेट पूरे करने होते हैं. अगर वे इन मानकों पर खरे नहीं उतरते, तो उन्हें दोबारा थकाऊ ट्रेनिंग प्रोग्राम से गुजरना पड़ता है, बुकिंग्स और लीड्स कम हो जाती हैं, और यहां तक कि उनकी आईडी अस्थायी या स्थायी रूप से ब्लॉक भी की जा सकती है.
उदाहरण के लिए, किसी वर्कर को अपने नाम पर ऑटो-असाइन की गई तीन से ज़्यादा बुकिंग्स रद्द करने की अनुमति नहीं होती- फिर चाहे कारण स्वास्थ्य हो या कोई निजी समस्या. इसके अलावा, उन्हें हर महीने वीकेंड पर कम से कम 70 घंटे काम करना अनिवार्य होता है.
ये ध्यान देने की बात यह है कि ग्राहक हर सेवा के बाद ऐप पर उन्हें 'रेट' करते हैं. एक कर्मचारी की रेटिंग 4.7 या उससे अधिक होनी चाहिए. लेकिन अगर किसी कर्मचारी को लगातार पांच 5-स्टार रेटिंग भी मिलती हैं, तो भी किसी ग्राहक से एक खराब रेटिंग के नतीजतन बड़ी गिरावट आ सकती है, जिसके बाद पुनः प्रशिक्षण अनिवार्य हो जाता है.
वर्करों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि पुनःप्रशिक्षण ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से करवाई जाती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि सेवा का प्रकार क्या है और समस्या कितनी गंभीर है. डॉली देवी ने बताया कि अगर मामला “गंभीर” हो, जैसे कि लगातार कम रेटिंग, खराब प्रोडक्ट स्कोर, क्लाइंट के मैसेज का देर से जवाब देना, ऑफलाइन बुकिंग के आरोप या बार-बार शिकायतें, तो कंपनी पहले तीन चेतावनियां देती है. इसके बाद वर्कर की आईडी हमेशा के लिए ब्लॉक कर दी जाती है.
पहली चेतावनी में वर्कर को एक वीडियो भेजा जाता है, जिसमें उनकी खास समस्या को समझाया जाता है. अगर इसके बाद भी सुधार नहीं होता, तो दूसरी चेतावनी के तौर पर कंपनी का ट्रेनर सीधे वर्कर से संपर्क करता है. तीसरी चेतावनी तक मामला पहुंचने पर, वर्कर को ऑफलाइन ट्रेनिंग सेशन में भाग लेना अनिवार्य कर दिया जाता है.


कम गंभीर मामलों, जैसे कि कभी-कभार होने वाली शिकायत के लिए भी पुनः प्रशिक्षण की सिफारिश की जा सकती है. ये फैसले, हर मामले को अलग से देखकर लिए जाते हैं. उदाहरण के लिए, बेंगलुरु में 44 वर्षीय संजना नामक एक कर्मचारी को तीन दिवसीय ऑनलाइन पुनः प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेना पड़ा, क्योंकि उसकी रेटिंग 4.7 से नीचे गिरने के कारण उसकी आईडी ब्लॉक कर दी गई थी.
उसने कहा, "उन तीन दिनों के लिए मैं काम करने में असमर्थ रही , जो मेरे लिए बहुत बड़ा नुकसान है.”
मुंबई के पनवेल में एक कर्मचारी दीक्षा* ने कहा कि जब अर्बन कंपनी ऐप ने एक नया फेशियल पेश किया, तो उसे खुद जाकर पुनः प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेना पड़ा.
उसने बताया, "मेरी दादी की मृत्यु हो गई और हम उनका शव नहीं ले पाए. लेकिन अर्बन कंपनी के अधिकारियों ने मुझसे कहा कि ऑनसाइट पुनः प्रशिक्षण अनिवार्य है, और इसे छोड़ा नहीं जा सकता. जब मैं कुछ घंटे देरी से पहुंची, तो उन्होंने मुझे प्रशिक्षण में शामिल होने की इजाज़त नहीं दी."
इतना ही नहीं, दीक्षा को ऑफ़लाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए 1.5 घंटे सफर करना पड़ा, जिसमें उसका वक्त और पैसा दोनों बर्बाद हुए.
जुड़ने के लिए पैसा दो, काम करने के लिए पैसा दो, रहने के लिए पैसा दो
अर्बन कंपनी के कर्मचारियों को उनके "उत्पाद स्कोर" के आधार पर मापा जाता है, जिसकी गणना कर्मचारी द्वारा अर्बन कंपनी से खरीदे गए कुल उत्पादों के प्रतिशत के रूप में की जाती है. कंपनी के अपने खुद के ब्रांड के उत्पाद हैं - जैसे फेशियल किट, पेडीक्योर किट, वैक्सिंग स्ट्रिप्स वगैरह और कर्मचारियों को उन्हें खरीदना पड़ता है. अपॉइंटमेंट के दौरान, कर्मचारियों को इस्तेमाल किए जाने वाले हर उत्पाद को स्कैन भी करना पड़ता है.
अर्बन कंपनी के खुद के ब्रांड के अलावा किसी अन्य उत्पाद का इस्तेमाल करने या क्यूआर कोड के साथ तकनीकी समस्याओं का सामना करने पर भी कर्मचारी के ‘उत्पाद स्कोर’ प्रतिशत में भारी कमी आ जाती है. यह बदले में पुनः प्रशिक्षण और आईडी ब्लॉक को ट्रिगर कर सकता है.


यह खासतौर पर परेशान करने वाला है, क्योंकि कर्मचारियों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि अर्बन कंपनी के उत्पाद बाजार में उपलब्ध अन्य उत्पादों की तुलना में कहीं ज्यादा महंगे हैं. साथ ही अर्बन कंपनी उन्हें एमआरपी यानी खुदरा मूल्य पर उत्पाद बेचती है.
निशा ने बताया, "अगर मैं किसी थोक विक्रेता से नैपकिन, बेडशीट और बॉडी कवर जैसे उत्पाद खरीदती हूं, तो वे खुद के लिए मुनाफा कमाने के बाद भी मुझे कम से कम 20 प्रतिशत की छूट देते हैं." बरखा ने कहा, "ज्यादा से ज्यादा हमें 10, 20 या 50 रुपये की छूट मिलती है. कई अन्य लोगों ने कोई छूट नहीं मिलने की शिकायत भी की है."
बरखा ने कीमत के अंतर को समझाया: "12 वैक्स स्ट्रिप्स के एक बंडल की कीमत हमें 220 रुपये पड़ती है. हालांकि, कंपनी प्रत्येक वैक्स स्ट्रिप को 80-90 रुपये में बेचती है. गाउन और बेडशीट जैसे सामान की कीमत कंपनी के ज़रिए 50 रुपये है, लेकिन हम उन्हें बाजार में 12 रुपये में खरीद सकते हैं."
ब्यूटीशियन के तौर पर काम करने वाले कई कर्मचारियों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि जब वे अर्बन कंपनी में शामिल हुए तो उन्हें “ट्रेनिंग और प्रोडक्ट किट” के लिए “बहुत ज्यादा” पैसे देने पड़े. उन्होंने कहा कि इसकी कीमत 40,000 से 50,000 रुपये के बीच थी. जॉइनिंग के समय ट्रेनिंग की अवधि 15 दिन हुआ करती थी, लेकिन अब यह एक महीने की हो गई है, इस दौरान कर्मचारियों को कंपनी से प्रोडक्ट किट खरीदनी पड़ती है और काम सीखने के लिए मुफ्त में अपनी सेवाएं देनी पड़ती हैं.
पनवेल की ब्यूटीशियन ऋषिता ने कहा, “मैंने ट्रेनिंग और प्रोडक्ट किट के लिए 50,000 रुपये का भुगतान किया, लेकिन मैं सिर्फ 10,000 रुपये ही दे पाई. बाकी पैसे के लिए मैंने कंपनी से लोन लिया, जिसे मैंने एक साल में चुका दिया.”
ये सिर्फ खर्च भर नहीं हैं. कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें पक्का काम मिलने के बदले में कमीशन, टैक्स देना पड़ता है और मासिक योजना की सदस्यता लेनी पड़ती है. कमीशन का मतलब है किसी सेवा पर कमाई रकम से अर्बन कंपनी को दिया जाने वाला कुछ फीसदी हिस्सा. 2021 में गुरुग्राम में कर्मचारियों के विरोध के बाद अर्बन कंपनी ने अपना उच्चतम कमीशन 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया था.
जहां तक मासिक योजना की बात है, कर्मचारियों को 10-दिन की योजना के लिए लगभग 1,000 रुपये का भुगतान करना पड़ता है (अन्य अवधि के लिए भी योजनाएं हैं). उन्होंने कहा कि अगर वे इन योजनाओं को नहीं चुनते हैं, तो उन्हें सर्विस की कम लीड मिलती हैं. बेंगलुरु में अर्बन कंपनी की कर्मचारी संजना कहती हैं, "हमें दिन भर में शायद एक ही काम मिले."
न्यूज़लॉन्ड्री को बताया गया कि इन योजनाओं को अक्सर उन्हें "छोटी अवधि" जैसे कि एक या दो दिन के लिए आकर्षक बताकर विज्ञापित किया जाता है, ताकि वे साइन अप करने के लिए प्रेरित हों. अगर वे इस समय अवधि में किसी योजना का विकल्प नहीं चुनते हैं, तो योजना की कीमत बढ़ जाती है.
इन खर्चों के अलावा, कर्मचारियों को ऐप पर “क्रेडिट” जोड़ना होगा, जो कि किसी भी राशि का हो सकता है. जब वे कोई काम या सर्विस पूरी करते हैं, तो उनके बैलेंस से क्रेडिट (लगभग 10 रुपये) काट लिया जाता है. प्राइम श्रेणी के कर्मचारियों को लगभग 2,500 रुपये का बैलेंस बनाए रखना चाहिए; लक्स कर्मचारियों को लगभग 3,500 रुपये का बैलेंस रखना चाहिए.
कम कमाई, और बेरहमी
लेकिन ये कर्मचारी कितना कमा पाते हैं?
दिल्ली में, 2,400 रुपये की कीमत वाली सेवा के लिए, बरखा एक बार इस्तेमाल होने वाली फेशियल किट के लिए 900 रुपये, डिस्पोजेबल (बेडशीट, नैपकिन, आदि) के लिए 60 रुपये, आने-जाने के लिए 150 रुपये, अर्बन कंपनी के कमीशन के लिए लगभग 600 रुपये और टीडीएस के रूप में 140 रुपये का भुगतान करती हैं. इस तरह से उनकी कमाई लगभग 600 रुपये रह जाती है.
और ये रकम भी उनके बैंक खाते में आएगी, पक्का नहीं है. उनके खाते से क्रेडिट काटा जाता है और फिर उनकी कमाई का एक हिस्सा ऐप पर उनके क्रेडिट बैलेंस को बनाए रखने के लिए क्रेडिट में बदल दिया जाता है.
पनवेल में काम करने वाली ऋषिता ने कहा कि 767 रुपये की सेवा के लिए, उसे सफर (ऑटो-रिक्शा) के लिए 300 रुपये, अर्बन कंपनी के कमीशन के लिए 150 रुपये, सामान की लागत के लिए 180 रुपये और कर का भुगतान करना पड़ा. उसके पास लगभग 100 रुपये बचे.


इन सभी चिंताओं से परे काम का शारीरिक और मानसिक बोझ है.
निशा ने कहा, “हमें गधों की तरह 20-25 किलो का बैग ढोना पड़ता है. इस हालत में चौथी मंजिल तक चढ़ने की कल्पना कीजिए? हम कई सोसायटियों में लिफ्ट तक इस्तेमाल नहीं कर पाते क्योंकि वो केवल वहां रहने वालों के लिए होती हैं.”
डॉली देवी ने कहा, “उचित आराम की कमी, तनाव और सही खान-पान न लेने की वजह से मेरे दोनों हाथों की कलाई में दर्द शुरू हो गया है. मेरे डॉक्टर का कहना है कि मुझे हाइपरथायरायडिज्म हुआ है और हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो गया है.”
36 वर्षीय सोनम* ने कहा कि वे अर्बन कंपनी में ब्यूटीशियन के तौर पर काम करती थीं, लेकिन 2021 में उनकी आईडी स्थायी रूप से ब्लॉक होने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी.
उन्होंने कहा, “जब मैं काम कर रही थी, तो मेरा गर्भपात हो गया था जिसे व्यक्तिगत समस्या बताकर खारिज कर दिया गया. मेरी प्रशिक्षण अवधि के दौरान, हमें दो या तीन घंटे तक पानी नहीं पीने के लिए कहा गया था, वरना हमें वॉशरूम का उपयोग करना पड़ेगा और क्लाइंट शिकायत कर सकता है, इसके चलते कई महिलाओं को [गुर्दे की] पथरी हो गई.”
बेंगलुरु में संजना ने बताया कि खराब मौसम या स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बावजूद भी कर्मचारियों पर दया नहीं की जाती.उन्होंने कहा, "हमें बिना अपवाद के, बारिश में, गर्मी में भी, पीरियड्स के दौरान भी काम करना पड़ता है. मुझे पीरियड्स के दौरान पैड बदलने का भी समय नहीं मिलता."
हेल्पलाइन पर कोई मदद नहीं
कागजों पर अर्बन कंपनी के पास अपने कर्मचारियों के लिए एक समर्पित हेल्पलाइन है. फिर भी न्यूज़लॉन्ड्री को बताया गया कि अक्सर जवाब “देरी से” या “कोई फायदा नहीं” होता है, क्योंकि कंपनी “ग्राहक का पक्ष लेती है”.
उदाहरण के लिए, मुंबई की एक ब्यूटीशियन पालकी* ने कहा कि उसे एक महिला ने पैडीक्योर के लिए बुकिंग की थी. लेकिन जब वह क्लाइंट के घर गई तो उसे एक आदमी को पेडीक्योर देने के लिए कहा गया, जिससे उसे असुरक्षित और परेशानी महसूस हुई. बाद में उसने इस मामले को लेकर हेल्पलाइन से भी संपर्क किया, लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने कहा कि वे मामले की जांच करेंगे.
पनवेल की मानसी* ने कहा कि उसे एक महिला क्लाइंट ने “परेशान किया और गाली दी” जिसने जोर देकर कहा कि वह उसके पैरों की मालिश करे, जबकि बुकिंग केवल फेशियल के लिए थी. उसने कहा कि क्लाइंट ने उसे पैसे देने से इनकार कर दिया और अर्बन कंपनी हेल्पलाइन पर पहुंचने के बाद भी वह अपना पैसा ले पाने में असमर्थ रही.
मानसी ने यह भी कहा कि उसके हाथों में दर्द हो रहा है, और उसने हेल्पलाइन के जरिए अनुरोध किया कि उसे पेडीक्योर के अलावा दूसरी सेवाएं लेने दिया जाए. एक क्षेत्रीय प्रबंधक ने उससे संपर्क किया लेकिन मेडिकल दस्तावेजों की कमी के कारण उसकी अर्ज़ी को अस्वीकार कर दिया गया. उसने कहा, "क्या मैं 4,000 रुपये या 5,000 रुपये में चेकअप कराऊं, ताकि उन्हें दस्तावेज उपलब्ध करा सकूं?"
न्यूज़लॉन्ड्री ने न्याय नीत फाउंडेशन के वकील फिदेल सेबेस्टियन से बात की, जो हाशिए पर पड़े और वंचित समूहों को कानूनी सहायता प्रदान करती है. जब हमने पूछा कि क्या अर्बन कंपनी के कर्मचारियों को स्वतंत्र ठेकेदारों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, तो सेबेस्टियन ने कहा, "नहीं. भारतीय कानूनों के तहत अगर काम बारहमासी प्रकृति का है, तो कर्मचारी को कामगार माना जाता है."
इसका लब्बोलुबाब है कि अगर काम नियमित और स्थायी है, तो व्यक्ति को पूर्णकालिक कर्मचारी की तरह माना जाना चाहिए, न कि "ठेकेदार" या "साझेदार" की तरह. उस स्थिति में, ऐसे कर्मचारी औद्योगिक विवाद अधिनियम और अन्य संबद्ध कानूनों के दायरे में आएंगे, और भविष्य निधि, ग्रेच्युटी और अन्य लाभों के लिए पात्र होंगे.
भारत में गिग वर्कर्स के लिए अब तक कोई समर्पित राष्ट्रीय कानून नहीं है. कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी 2020 में भले ही गिग वर्कर्स को मान्यता दी गई हो, लेकिन यह अब तक लागू नहीं हो सका है क्योंकि राज्यों के नियम अभी लंबित हैं. इसी वजह से अर्बन कंपनी या उबर जैसे प्लेटफॉर्म्स पर काम करने वाले वर्करों को सिर्फ “कॉन्ट्रैक्टर” या “पार्टनर” की श्रेणी में रखा जाता है, उन्हें फुल-टाइम कर्मचारियों जैसे अधिकार या लाभ नहीं मिलते.
अर्बन कंपनी के आईपीओ दाखिल करने की तैयारी के बीच, गिग और प्लेटफॉर्म सर्विस वर्कर्स यूनियन की उपाध्यक्ष सेल्वी एम ने कहा कि उन्होंने “इस आईपीओ के खिलाफ लड़ाई लड़ने की कसम खाई है.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने अर्बन कंपनी को एक विस्तृत प्रश्नावली भेजी. अगर वे जवाब देते हैं तो यह रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी.
जब प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया गया, तो कंपनी की सीनियर डायरेक्टर (कॉरपोरेट कम्युनिकेशन और ईएसजी) भावना शर्मा ने कहा, “हमारे यहां ओपन-डोर पॉलिसी है. हम कोई भी बदलाव अपने पार्टनर्स से बातचीत करके और उनकी सहमति से ही करते हैं. हम फील्ड में मीटिंग्स करते हैं, वॉक-इन सेशन्स होते हैं. इसलिए मुझे समझ नहीं आता कि यह कैसे कहा जा रहा है कि उनके सुझाव या राय फैसलों में शामिल नहीं की जा रही.”
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