
बिहार में चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (विशेष गहन पुनरीक्षण) प्रक्रिया को लेकर मचा विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. विपक्ष की ओर से उठाई गई आपत्तियों पर सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए. इनमें आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को वोटर सत्यापन के लिए वैध माने जाने की सिफारिश शामिल है. अदालत ने यह भी कहा कि अगर चुनाव आयोग इन दस्तावेजों को स्वीकार नहीं करता, तो उसे लिखित रूप में इसका कारण बताना होगा.
इसी पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा से न्यूज़लॉन्ड्री ने विशेष बातचीत की. इस इंटरव्यू में उन्होंने न्यायालय के निर्देशों, चुनाव आयोग की प्रक्रिया और इसके सामाजिक-राजनीतिक असर पर विस्तार से चर्चा की.
मनोज झा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के प्रमुख पक्षकारों में से हैं. उन्होंने आयोग की ओर से अपनाई गई प्रक्रिया को अपारदर्शी और परामर्शहीन बताया. साथ ही आशंका जताई कि यह प्रक्रिया बड़ी संख्या में वोटरों को सूची से बाहर कर सकती है. खासकर ऐसे लोगों को जिनके पास पहचान के सीमित दस्तावेज़ उपलब्ध हैं. झा ने कहा है कि बिहार जैसे राज्य, जहां बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर और दस्तावेज़-वंचित नागरिक रहते हैं, वहां इस प्रक्रिया से सामाजिक बहिष्कार की स्थिति बन सकती है.
बातचीत में झा ने कई और बिंदुओं पर भी ध्यान दिलाया जैसे कि दस्तावेज़ों की वैधता, समय सीमा की कमी, वॉलंटियरों की चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव, और सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए सवालों की प्रासंगिकता. उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग जैसी संस्था को "फैसिलिटेटर" की भूमिका निभानी चाहिए, न कि "फिल्टर" के तौर पर काम करना चाहिए.
इस इंटरव्यू में आने वाले विधानसभा चुनावों और बिहार की राजनीतिक स्थिति पर भी चर्चा हुई है. खासतौर पर सत्तारूढ़ गठबंधन में घटक दलों की भूमिका, और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के इंडिया ब्लॉक में शामिल होने की संभावनाओं पर भी बात हुई. इसके अलावा, राज्य में कानून-व्यवस्था, जंगल राज के आरोप, और 2020 के विधानसभा चुनाव में पोस्टल बैलेट से जुड़ी प्रक्रियात्मक शिकायतों पर भी विस्तार से बात की गई है.
सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को करेगा. उससे पहले यह बातचीत कई अहम सवालों को स्पष्ट करती है. जैसे कि क्या यह प्रक्रिया निष्पक्ष और समावेशी है? क्या यह भारत के लोकतंत्र की बुनियाद पर असर डाल सकती है? और क्या आयोग की भूमिका बदलते राजनीतिक परिदृश्य में विश्वसनीय बनी रह पाती है?
देखिए मनोज झा से पूरी बातचीत.
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