
21 अक्टूबर को दिल्ली एक बार फिर दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन गया. इस पीछे एक बड़ा कारण दिवाली की रात को भारी मात्रा में पटाखे फोड़ना रहा.
यूं तो दिल्ली सरकार ने दावा किया था कि इस दिवाली सिर्फ ग्रीन पटाखे जलाए जाएंगे, जिससे कि 20-30% कम प्रदूषण होगा लेकिन हकीकत में यह दावा जमीनी सच्चाई से मेल खाता नहीं दिखा.
एक तरफ जहां दिवाली से पहले पारंपरिक पटाखे धड़ल्ले से बेचे गए तो दूसरी तरफ दिवाली की रात सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध की धज्जियां उड़ाते हुए देर रात तक पटाखे जलाए गए.
इस सबका असर यह हुआ कि रात में ही दिल्ली के कई इलाकों में एक्यूआई 999 के पार पहुंच गया. नतीजा- आज दिवाली के तीन दिन बाद भी दिल्ली की हवा बेहद खराब स्थिति में है और दिल्ली के लोगों का दम घोंट रही है. लेकिन इस जहरीली हवा से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं बच्चे और बुजुर्ग. खासकर वो बच्चे जो अस्थमा या सांस की बिमारियों से जूझ रहे हैं. उनके लिए हर एक सांस जहर का घूंट पीने जैसा है. कई बच्चे तो इस दौरान पूरी तरह नेब्युलाइज़र पर पूरी तरह निर्भर हो गए हैं.
शारीरिक गतिविधि (खेलना, कूदना, दौड़ना आदि) छोटी उम्र के बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ विकास के लिए भी बहुत जरूरी है. हालांकि, बढ़ते प्रदूषण के चलते दिल्ली के ज्यादातर बच्चे घरों में रहने को मजबूर हैं.
हमने इस रिपोर्ट में ऐसे बच्चों और उनके परिवारों से बात कर उनकी परेशानियां समझने की कोशिश की.
देखिए यह खास रिपोर्ट.
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