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अभिनंदन सेखरी

यह हमारी और आपकी जिम्मेदारी है कि मोदीजी निराश न हों

इसी हफ्ते आपातकाल को 50 साल हो गए हैं. लेकिन चिंता न करें- हमारे समाचार पत्र और न्यूज़ चैनल, अपनी ज़िम्मेदारी, स्वतंत्र सोच और पूरी तरह  मूल्य-आधारित कवरेज के साथ, आपको इसकी याद ज़रूर दिलाएंगे.

25 जून, 1975 को लोकतांत्रिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था. उस समय के युवा, आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसकी चपेट में आए थे. मोदीजी ने सरदार के वेश में इंदिरा के क्रोध का सामना किया, लेकिन नागरिकों के पास कोई आवाज़ नहीं थी. लेकिन, भगवान का शुक्र है कि मोदीजी ने वह लड़ाई कभी नहीं छोड़ी. बेशक, वह मीडिया जिसे ‘झुकने को कहा गया था और वह रेंगने लगा’ था, उसने मोदीजी का समर्थन नहीं किया. 

ऐसा लगा जैसे स्वतंत्रता आंदोलन का कोई मतलब नहीं रह गया था. भारत के लोग इस तरह के आतंक को कैसे बर्दाश्त कर सकते थे? किसी ने ध्यान नहीं दिया, किसी ने परवाह नहीं की- और सबसे बुरी बात कि उन्होंने मोदीजी को निराश किया. यह सब इसलिए क्योंकि पहला हमला प्रेस की आज़ादी पर हुआ था. 

लेकिन आप निश्चिंत रहें, ऐसा दोबारा नहीं होगा. मोदीजी की क्षमता वाला कोई भी भावी नेता जिसने अन्याय का विरोध किया, उसे अकेला नहीं छोड़ा जाएगा. कम से कम हम तो नहीं छोड़ेंगे.

इसलिए जब हमारे माननीय प्रधानमंत्रीजी ने आज ट्वीट किया कि कैसे “सभी क्षेत्रों” के लोगों ने मिलकर भारत के सबसे काले अध्याय के दौरान लोकतंत्र की रक्षा के लिए काम किया, तो मैंने सहमति में इतने जोर से सिर हिलाया कि सहकर्मियों को लगा कि मैं सिर घुमाने वाली भूत-प्रेत वाली लड़की की तरह प्रेतबाधा का शिकार हो गया हूं. मेरे सहकर्मी किसी पुजारी को बुलाने ही वाले थे- तभी मैंने उन्हें याद दिलाया कि अगर मैं प्रेतबाधित हूं, तो बेहतर होगा कि किसी हिंदू पुजारी को बुलाया जाए.

ओह, मैं विषय से भटक गया!

मैं माननीय गृहमंत्री अमित शाह की सराहना किए बिना भी नहीं रह सकता, जब उन्होंने दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में समुचित गंभीरता के साथ आयोजित संविधान हत्या दिवस कार्यक्रम के मंच से गरजते हुए बयान दिया. उन्होंने कहा, “स्टे देने वाली कोर्ट को भी, अखबारों को भी चुप किया, आकाशवाणी को भी चुप किया और 1,10,000 सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जेल की काल कोठरी बंद कर दिया…” इस कथन ने मेरी आत्मा को झकझोर दिया. जैसे ही शाहजी ने कहा, "लोकतंत्र की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है", तभी मुझे पता था कि हमें मेहनत करनी होगी.

इसलिए मैं सर्वोच्च स्तर की राष्ट्रीय सेवा के लिए हमारे साहसी, सदैव सतर्क मीडिया को सलाम करता हूं. अंग्रेजी और हिंदी समाचार मीडिया ने, शायद स्वेच्छा से (या शायद नहीं), संविधान हत्या दिवस को कवर करने का नेक काम किया. एक दुर्लभ क्षण जब वे खड़े हुए (अपने आप, जो मुझे लगता है कि संभव भी है).

पूरे दिन, एनडीटीवी और बाकी चैनलों ने लगातार वो ख़बर चलाईं, जिसमें हमें याद दिलाया गया कि कैसे मोदीजी भूमिगत हो गए थे जब प्रेस की आजादी को कुचला जा रहा था. केवल इसलिए कि उन्होंने एक ऐसी विचारधारा पर रिपोर्ट की जिसे इंदिरा गांधी राजनीतिक रूप से असुविधाजनक मानती थीं.

न्यायपालिका बिना किसी शोर-शराबे के साथ हो ली. वो बहुत ही अंधकारमय दौर था. लेकिन मुझे सबसे ज्यादा दुख इस बात का है कि कोई भी नहीं था- कोई भी मीडिया आउटलेट, जो बहादुर मोदीजी, हमारे संविधान, हमारी नागरिक स्वतंत्रता और सबसे महत्वपूर्ण रूप से हमारे नागरिकों के लिए खड़ा हो, जिनसे आज़ादी और अधिकारों का वादा किया गया था, पर मिला सिर्फ़ सरकार की हां में हां मिलाने वाला मीडिया और तानाशाही राज. 

सौभाग्य से, आज उस तरह का अन्याय को दोहराया नहीं जा सकता.

क्योंकि आज हमारे पास वास्तव में स्वतंत्र मीडिया, संविधान हत्या दिवस और एक ऐसी सरकार है जो सुनिश्चित करती है कि हम कभी न भूलें कि तानाशाही कैसी होती है, कहीं ऐसा न हो कि हम इसे किसी और चीज़ के लिए गलत समझ लें.

आखिरकार, अब हमारे पास ऐसे पत्रकार हैं जो रेंगते नहीं हैं. वे झुकते नहीं हैं. वे घुटने नहीं टेकते. वे ऐसे सवाल नहीं पूछते, “मोदीजी, आप में इतनी ऊर्जा कहां से आती है?” वो इसलिए क्योंकि उन्हें सरकारी खजाने से विज्ञापन मिल रहे हैं.

और इसके लिए हमें अपने अद्भुत प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि स्वतंत्र समाचार आउटलेट अभी भी समृद्ध हो सकते हैं, तब भी जब वे ऐसे विज्ञापन नहीं लेते हैं जिनमें मुस्कुराते हुए मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री और सर्वव्यापी प्रधानमंत्री खुद दिखाई देते हैं.

इसलिए, यदि आप, हमारी तरह माननीय प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के शब्दों का सम्मान करते हैं और उन पर ध्यान देते हैं, और यदि आप यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आपातकाल जैसा अन्याय फिर से न दोहराया जाए, चाहे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, आधिकारिक अधिसूचना द्वारा या कपटपूर्ण अघोषित तरीकों से, खुले तौर पर या गुप्त रूप से, जेल के डर से या सरकारी विज्ञापन के लालच से, तो आप जानते हैं कि आपको क्या करना चाहिए. यदि आप यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि मीडिया लठैत राजनीतिक नेतृत्व की जवाबदेही तय कर पाने में विफल न हो, जैसा कि उसने 1975 में आरएसएस और जनसंघ के साथ किया था, तो आप जानते हैं कि आपको क्या करना चाहिए.

यदि आप यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि मोदीजी जैसे होनहार नेताओं को फिर से भूमिगत न होना पड़े, तो आपको स्वतंत्र मीडिया का समर्थन करना चाहिए.

नीचे दिए गए लिंक्स को देखें और खबरों की आज़ादी बचाए रखने के लिए भुगतान करें. क्योंकि जब जनता भुगतान करती है, तब जनता की सेवा होती है, और लोकतंत्र भी सुरक्षित रहता है. और हमारे प्यारे भावी प्रधानमंत्रियों को भूमिगत होने की नौबत नहीं आती. 

यहां क्लिक करें और सुनिश्चित करें कि मीडिया फिर कभी राजनीतिक सत्ता, सरकारी विज्ञापन या मित्र उद्योगपतियों का मुखपत्र न बने.

यहां क्लिक करें ताकि मीडिया सिर्फ़ सवाल करे, सिर न झुकाए- चाहे कितनी ही शालीनता से दबाव क्यों न डाला जाए. 

अपने खर्च पर ख़बरों की आज़ादी बनाए रखने के लिए भुगतान करें ताकि आज से 50 साल बाद, कोई और ऐसा शो न करे जैसा कि अभी भारतीय टेलीविजन न्यूज़ मीडिया 50 साल पुरानी भयानक घटनाओं के बारे में कर रहा है. समाचारों को मुफ़्त रखने के लिए भुगतान करें ताकि आज से 50 साल बाद, एआई एंकर 2025 की घटनाओं की भयावहता का वर्णन न करें, बल्कि इसकी प्रेस की स्वतंत्रता के स्वर्णिम युग के रूप में प्रशंसा करें और बताएं कि इंदिरा गांधी के मुकाबले आज की प्रेस की आज़ादी कितनी अद्भुत थी.

खबरों को आज़ाद रखने के लिए खर्च करें ताकि भविष्य की सरकारें “संविधान हत्या दिवस” जैसे ईवेंट के आयोजनों पर करदाताओं का पैसा बर्बाद न करें. इस बचे हुए पैसे को शौचालयों पर खर्च करना बेहतर हो सकता है, ताकि आज भी सड़कों पर शौच करने वाले बच्चों को राहत मिले.

अगर आप आज श्री मोदी और श्री शाहजी के कहे से सहमत हैं, अगर उनकी चेतावनियों ने आपको उसी तरह प्रभावित किया है जिस तरह से उन्होंने मुझे प्रभावित किया है तो खबरों का आज़ाद रखने के लिए थोड़ा सा खर्च जरूर करें. 

खबरों को मुफ़्त रखने के लिए पैसे खर्च करें और मोदीजी के सपनों का भारत बनाने में मदद करें. एक ऐसा भारत जहां किसी को फिर कभी यह कहने की ज़रूरत न पड़े कि “प्रेस ने हमें निराश किया.”

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मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित इस लेख को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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