Get all your news in one place.
100’s of premium titles.
One app.
Start reading
Newslaundry
Newslaundry
सुमेधा मित्तल

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार का बिहार में मकान नम्बर '0' वाले पतों का बचाव गले नहीं उतरता

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) के खिलाफ लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया. इस दौरान ज्ञानेश कुमार ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से कहा कि या तो वे सात दिनों के अंदर हलफनामे के जरिए अपनी शिकायतें दर्ज कराएं या देश से माफी मांगें.

उन्होंने बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (एसआईआर) के दौरान लाखों मतदाताओं के मकान नंबरों को शून्य बताए जाने से उठे सवालों पर भी बात की. उन्होंने कहा कि स्थानीय प्रशासन द्वारा ऐसे नंबर आवंटित नहीं किए जाने पर यह एक सामान्य बात होती है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने रिपोर्ट किया था कि बिहार में कम से कम 2.92 लाख मतदाताओं के मकान नंबर '0', '00' और '000' हैं. बाद में राजद सुप्रीमो तेजस्वी यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस रिपोर्ट को चिन्हित किया था. हालांकि, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार का स्पष्टीकरण, बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय द्वारा न्यूज़लॉन्ड्री को दिए गए स्पष्टीकरण से बिल्कुल अलग है. उन्होंने हमें बताया था कि ये प्रविष्टियां एसआईआर प्रक्रिया में हुई एक गलती थीं और इन्हें सुधारने की जरूरत है. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने भी ज्ञानेश कुमार के स्पष्टीकरण पर सवाल उठाए.

ज्ञानेश कुमार ने कहा, "क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में करोड़ों लोगों के पते की जगह शून्य लगा होता है? क्यों? क्योंकि जिस पंचायत या नगर पालिका में वे रहते हैं, उसने उन्हें कोई नंबर नहीं दिया है. शहरों में तो अनाधिकृत कॉलोनियां भी हैं, जहां मकान नंबर ही नहीं है. तो फिर वो अपने फॉर्म में क्या भरें?"

मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह प्रेस कॉन्फ्रेंस उस दिन की, जिस दिन लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, राजद नेता तेजस्वी यादव और इंडिया गठबंधन के अन्य सहयोगियों ने बिहार में आगामी चुनावों के मद्देनज़र 16 दिनों की 'वोट अधिकार यात्रा' शुरू की.

उन्होंने कहा, "चुनाव आयोग के निर्देशों में कहा गया है कि अगर देश में कोई भी मतदाता ऐसी परिस्थितियों में है, तो चुनाव आयोग उसके साथ खड़ा है और उसे एक काल्पनिक चलाऊ नंबर देगा, क्योंकि कंप्यूटर में दर्ज करने वक्त बतौर शून्य स्वीकार हो जाता है. पर इसका मतलब यह नहीं है कि वे मतदाता नहीं हैं."

उप मुख्य निर्वाचन अधिकारी अशोक प्रियदर्शी ने बताया कि कई बार जब मतदाता अपने मकान नंबर नहीं भरते, तब भी चुनाव आयोग की वेबसाइट ऐसे नामांकन आवेदन स्वीकार कर लेती है और इसलिए मकान नंबर का डिफ़ॉल्ट मान '0' दिखता है. उन्होंने आगे कहा, "लेकिन ज़मीनी सत्यापन करने के बाद बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) सही पते जोड़ देते हैं, जो बिहार एसआईआर के मामले में नहीं हुआ है क्योंकि ड्राफ्ट मतदाता सूची में पते से जुड़ा कोई बदलाव नहीं किया गया है."

जब न्यूज़लॉन्ड्री ने बताया कि ऐसे 2.92 लाख से ज़्यादा मतदाता हैं, तो उन्होंने कहा कि वे इसकी जांच करेंगे और इस "त्रुटि" को सुधारेंगे.

मतदाता सूची तैयार करने के लिए 2023 के सबसे हालिया दिशानिर्देश भी इसकी पुष्टि करते हैं. इसमें मतदाता पंजीकरण करते समय "अधूरे" पते का जिक्र, जैसे "गली का नाम बताना लेकिन मकान नंबर नहीं बताना", खास तौर पर शक पैदा करता है कि आवेदक असली है भी या नहीं. दिशानिर्देशों में कहा गया है कि इस मामले में बीएलओ खुद जाकर की गई जांच में इसकी पुष्टि करेगा, और आवेदन पर सही-पूरा पता दर्ज किया जाना चाहिए.

लेकिन खास बात ये है कि इस नियमावली में अधूरे पते वाले मतदाताओं को काल्पनिक मकान संख्या दिए जाने का दिशानिर्देशों में जिक्र नहीं है.

इसका उल्लेख 24 जून को बिहार के एसआईआर पर चुनाव आयोग द्वारा जारी 19 पन्नों के निर्देशों में केवल एक फुटनोट के रूप में किया गया है. निर्देश में मकान नंबर को मतदाताओं के लिए अनिवार्य श्रेणी में शामिल नहीं किया गया है, और कहा गया है कि "जहां पंचायत/नगरपालिका प्राधिकरण द्वारा दिया गया मकान नंबर उपलब्ध नहीं है, वहां मतदाता सूची में काल्पनिक संख्या दी जाएगी. ऐसे मामलों में यह अनिवार्य रूप से दर्शाया जाएगा कि मकान संख्या काल्पनिक है."

न्यूज़लॉन्ड्री ने आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों से पूछा कि क्या मकान नंबर आवंटित करने को लेकर कोई दिशानिर्देश हैं, जिस पर उन्होंने जवाब दिया, "ऐसा में कोई दिशानिर्देश नहीं है जिसमें बताया गया हो कि बूथ स्तर के अधिकारी को काल्पनिक मकान नंबर कैसे आवंटित करने चाहिए. क्या ये नंबर 0 से शुरू होने चाहिए या 1 से."

ज्ञानेश कुमार ने बेघर मतदाताओं का उदाहरण देते हुए इस मुद्दे पर तर्क देने की भी कोशिश की. उन्होंने कहा, "कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके पास घर नहीं है… आप सब भाग्यशाली हैं. बहुत से लोगों के पास घर नहीं है, फिर भी उनका नाम वोटर लिस्ट में है. और उनका पता क्या दिया गया है? वो जगह जहां वो रात को सोने जाता है. कभी सड़क किनारे, कभी पुल के नीचे, कभी लैंप पोस्ट के पास."

मतदाता सूची संबंधी 2023 के मैनुअल में बेघर मतदाताओं के पंजीकरण के लिए दिशानिर्देश दिए गए हैं. इसमें कहा गया है कि जिन लोगों के पास एक आम निवास का कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं है, वे मतदाता सूची में नामांकन के पात्र हैं, बशर्ते वे सामान्य रूप से वहां रह रहे हों. ऐसे मामलों में, बीएलओ फॉर्म 6 में दिए गए पते पर एक रात से ज़्यादा बार जाकर यह सुनिश्चित करेगा कि बेघर व्यक्ति वास्तव में उस जगह पर सोता है या नहीं.

भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा, "यह सच है कि बीएलओ को काल्पनिक मकान नंबर, वो भी शून्य को आवंटित करने के लिए कोई दिशानिर्देश नहीं हैं. और शून्य मकान नंबर वाले मतदाता कभी मेरे सामने नहीं आए. इससे पता चलता है कि अगर एसआईआर के बाद मतदाता सूची में ऐसी गलती हुई है, तो और भी गलतियां होंगी. यह साफ है कि बेघर मतदाता के लिए भी पता विशिष्ट होना चाहिए. अगर कोई बेघर मतदाता किसी दुकान के बाहर सोता है, तो उस दुकान का पता ही उसका पता हो जाएगा. क्योंकि कल अगर आपको इस मतदाता को हटाना या सत्यापित करना पड़े, तो आप शून्य मकान नंबर वाले मतदाताओं को कहां ढूंढेंगे? वे आपको कहां मिलेंगे?"

मतदाता सूची में सही और सटीक पते महत्वपूर्ण होने की कई वजह हैं. इनमें से एक है मतदाता का नाम सूची से हटाने से पहले उसे डाक के जरिए सूचना देना. अगर आयोग को उस जवाब का जवाब नहीं मिलता है, तो वह मतदाता का नाम हटाने का निर्णय ले लेता है.

इसी के चलते न्यूज़लॉन्ड्री ने पहले बताया था कि स्पष्ट या अस्पष्ट पते आयोग के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गए हैं. मेरठ में जब हमने पाया कि दो मतदान केंद्रों पर 27 प्रतिशत फर्जी मतदाता हैं, तो उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिनवा ने कहा था, "ऐसे मतदाताओं को हटाने के लिए भारत के चुनाव आयोग के पास कोई स्पष्ट, मानक संचालन प्रक्रिया नहीं है. अगर पंजीकरण करते वक्त मतदाता का पूरा पता दर्ज नहीं किया जाता है, तो नाम हटाने के समय यह एक बड़ी समस्या बन जाती है. क्योंकि बीएलओ घर-घर जाकर उनका सत्यापन कैसे करेंगे, और हम उन्हें उनके वोट कटने की सूचना देने वाला नोटिस कहां भेजेंगे? साथ ही, अधूरे पते वाले ऐसे मतदाता शहरी इलाकों में एक व्यापक समस्या हैं और यह सिर्फ़ मेरठ तक ही सीमित नहीं है."

भ्रामक और गलत सूचनाओं के इस दौर में आपको ऐसी खबरों की ज़रूरत है जो तथ्यपरक और भरोसेमंद हों. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें और हमारी भरोसेमंद पत्रकारिता का आनंद लें.

Newslaundry is a reader-supported, ad-free, independent news outlet based out of New Delhi. Support their journalism, here.

Sign up to read this article
Read news from 100’s of titles, curated specifically for you.
Already a member? Sign in here
Related Stories
Top stories on inkl right now
Our Picks
Fourteen days free
Download the app
One app. One membership.
100+ trusted global sources.