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हृदयेश जोशी

छत्तीसगढ़: हाथियों का शिकार हो रहे आदिवासियों की परवाह किसे है?

छत्तीसगढ़ के जशपुर ज़िले में झारखंड और ओडिशा से लगे इलाके को हाथियों का प्रवेश द्वार कहा जाता है. राज्य के उत्तरी हिस्से में स्थित कई राज्यों में हाथियों का विचरण होता है लेकिन पिछले कुछ दशकों में यहां मानव-हाथी संघर्ष लगातार बढ़ा है क्योंकि सड़क, खनन और विकास परियोजनाओं के लिए हाथियों का गलियारा (एलिफेंट कॉरिडोर) खत्म हो रहा है. अपने लिए अनुकूल इलाकों में जाने के लिए हाथी जिस रास्ते से विचरण करते हैं उन्हें एलिफेंट कॉरिडोर कहा जाता है. इस कॉरिडोर के खत्म होने से अब हाथी आदिवासियों के रहवास इलाके में घुस रहे हैं और जान-मान की क्षति हो रही है. 

न्यूज़लॉन्ड्री और द न्यूज़ मिनट के चुनावी कवरेज के दौरान हमने इन ज़िलों का दौरा किया जहां आदिवासी संकट में हैं और हाथी भी अपना हैबिटेट खत्म होने से परेशान हो रहे हैं. सूचना के अधिकार से मिली जानकारी के मुताबिक 2019 से 2023 के बीच पूरे राज्य में कम से कम 245 लोगों की जान गई और 86 लोग घायल हुए हैं. इसके अलावा फसल नष्ट होने की करीब 60 हज़ार घटनाएं हुईं. जवाबी कार्रवाई में इंसान भी हाथियों को मार रहे हैं लेकिन कोई सटीक आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. 

हालांकि केंद्र सरकार ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि 2010 से अब तक एलिफेंट कॉरिडोर यानी हाथियों के विचरण के लिए बने गलियारों की संख्या 88 से बढ़कर 150 हो गई है. 

पूरे देश में कुल 30,000 जंगली हाथी हैं और छत्तीसगढ़ में केवल 300 हाथी हैं. भारतीय वन्यजीव संस्थान ने 2021 में अपनी रिपोर्ट में कहा कि पूरे देश के मात्र एक प्रतिशत हाथी राज्य में होने के बावजूद मानव-हाथी संघर्ष में मरने वाले 15 प्रतिशत लोग यहां हैं जो कि एक विरोधाभास है. 

डब्लूआईआई ने चेतावनी दी है कि अगर हसदेव अरण्य जैसे घने जंगलों को नहीं बचाया गया तो मानव-हाथी संघर्ष को संभालना मुश्किल हो जाएगा. लेकिन इस चेतावनी के बावजूद न तो केंद्र और राज्य सरकार कुछ कर रही हैं और न ही यह आज छत्तीसगढ़ या झारखंड के चुनावों में कोई मुद्दा है. अब आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ रहे संगठन इसे चुनावों में उठा रहे हैं. 

देखिए ये ग्राउंड रिपोर्ट-

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